बाबा रामदेव की एक ही ज़िद रह गई है कि विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों की काली पूंजी देश में वापस लायी जाये| इस विषय में मैं उनका समर्थन करता हूँ..लेकिन इस एक ही तथ्य के तीनों आयामों के बारे में उनसे कुछ जानना चाहता हूँ।
तथ्य यह है कि, काली पूंजी का उपयोग देशहित में होगा। इस तथ्य को लेकर, मैं बाबा रामदेव से तीन बातें जानना चाहता हूँ।
1.उस काली पूंजी के उपयोग को लेकर आपके पास क्या योजनायें परियोजनाएं हैं?
2. कानून की जटिलताएं, और पूंजीपति की नीयत, दोनों के बीच से निकलकर कालाधन किस तरीके से आ पायेगा। अर्थात जब तक पूंजीपति खुद नहीं चाहेगा, कालाधन आना संभव नहीं है और पूंजीपति ऐसा क्यों चाहेगा ! उसका क्या इंटरेस्ट ! अभी भी देश में बहुत बड़ी मात्रा में काला धन है। निरंतर बढ़ रहा है और विदेशों में जा रहा है, उसके बारे में आपकी क्या योजनायें हैं ?
3.जबकि आप राजनीति में जाना नहीं चाहते तो कोई दूसरा दल आपकी बात क्यों मानेगा। इस तीसरे बिंदु पर मेरा कहना है कि यदि आपकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा नहीं है तो आप इस निर्दलीय राजनैतिक आन्दोलन का समर्थन करें। यह न तो किसी पार्टी विशेष का समर्थन है और न ही विरोध है।
जब मतदाता की मजबूरी दलीय प्रतिनिधि चुनने की नहीं होगी तभी वह अपने क्षेत्र का अपना ईमानदार नेता चुन सकेगा। ईमानदार और स्वाभिमानी व्यक्ति दलीय राजनीति से घृणा के कारण राजनीति में नहीं आना चाहते। जब निर्दलीय संसद होगी, तो व्हीप जारी नहीं होंगी और निर्दलीय व्यक्ति निर्भय हो कर स्वविवेक से सोच सकेगा।
पहले बिंदु पर एक पत्रकार की हैसियत से मेरा कहना है कि मैंने इस विषय में योजनाकार की हैसियत से काफी कार्य कर रखा है, अनेक योजनायें-परियोजनाएं हैं, जिनमे निवेश फिर आय का पुनर्निवेश और रोजगार सृजन के साथ-साथ जीवन में स्थाईत्व के सभी आयाम शामिल हैं। इस बिंदु पर भव्य महाभारत संरचना नामक ब्लॉग में विस्तार दिया जा रहा है।
दूसरे बिंदु पर कहना है कि संविधान में संशोधन करवा के आयकर, विक्रयकर और अन्य प्रत्यक्ष कर हटा दिए जायेंगे। इससे काला धन पैदा नहीं होगा और जो भी व्यक्ति इन योजनाओं के लिए बाहर से निवेश लाएगा उससे यह नहीं पूछा जाएगा कि यह धन काला है या सफ़ेद है।
यदि आपकी नीयत में खोट नहीं है, मन में पाप नहीं है, घरबार छोड़ चुके हैं, अतः स्वार्थ के स्थान पर परमार्थ से सोच सकने में समर्थ हैं तो यह मेरी योजना इस तरह की है कि इसमे किसी भी वर्ग का अहित नहीं होगा। आपको भी परमार्थ कार्य करने का भरपूर क्षेत्र मिलेगा।
अब आपकी नियत तो आप ही जानते हैं। आपने तो भगवाँ पहन कर भी बड़े-बड़े उद्योगपतियों को पीछें छोड़ दिया है,यह आपकी व्यावसायिक बुद्धि का कमाल है। चूँकि आप व्यापार-वाणिज्य में हैं अतः आपकी नजर काली पूंजी पर है। लेकिन व्यापार में आपने जिस तरह की प्लानिग की है उसी तरह की प्लानिग इस काली पूंजी के लिए भी की होगी, वह प्लानिग डिक्लेयर कर दें।
लेकिन यह कहावत हमेशां ध्यान में रखें की "हाथी को बाँहों में नहीं बाँधा जा सकता"। अतः पूंजी के बल पर भीड़ इकठ्ठी करना अलग बात है और विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के तंत्र को चलाना अलग बात है।
मैं यह मानता हूँ कि भारत की दुर्दशा का कारण कोंग्रेस पार्टी है लेकिन इसके दुसरे पक्ष की सच्चाई यह भी है कि अन्य सभी दल भारत को ऐसे रसातल में लेजाकर पटकेंगे की भारत की रीढ़ ही टूट जाएगी। अतः यदि आप अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं तो आप की आप ही जानते हैं लेकिन यदि भारत का,मानवता का और सनातन धर्म का भला करने में अपनी ड्रेस कॉड का उपयोग करना चाहते हैं तो आप संसद को दल-दल मुक्त कराएँ और भारत की मूल प्रजातांत्रिक पद्धति को पुनर्प्रतिष्ठित करावें।
ऐसा हो जाता है कि पूंजीपति की पूंजी सुरक्षित रहे और उसके उपयोग की पूरी प्लानिग हो तो आप दल-दल मुक्त संसद में देश-हित के लिए जो भी करना चाहेंगे कर सकेंगे वर्ना क्यों तो राजनैतिक दल पूंजीपतियों से पंगा लेंगे,क्यों पूंजीपति अपनी कुशल बुद्धि से कमाई पूंजी राष्ट्र को देंगे और क्यों कोई राजनेता अपनी जीवन भर की संचित पूंजी को बिना किसी लाभ के देश को समर्पित कर देगा।
जब आप घरबार छोड़ कर भी पूंजीपति बनने का मोह नहीं त्याग सके तो उनसे यह अपेक्षा करना भोलापन कहा जायेगा जो इस मुकाम पर पूंजीपति बनने के लिए ही पहुंचे हैं।
राष्ट्र भी मानव निर्मित संस्था है और करेंसी नोट भी मानव निर्मित मुद्रा है। आप तो भगवान के नाम पर भगवाँ पहन कर भी पूंजीपति और राजनेता बनने का लोभ नहीं त्याग पाए और गृहस्थ को मुद्रा से वंचित करने कि चेष्टा कर रहे हैं। यह कहाँ का न्याय है।
यदि आप ईमानदार हैं तो संसद को दल दल मुक्त करें और सांसदों को बन्धुवा मानसिकता वाली राजनीति से मुक्त कराएं। जिस राष्ट्र के सांसद ही गुलाम हों वहाँ आप किस ईमानदारी की कल्पना कर रहे हैं।
ॐ तत् सत्
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