संस्कृत लम्बे समय तक संस्कारित हो कर विकसित हुई धर्म एवं विज्ञानं यानि सेन्स और साइंस की भाषा है. संस्कृत के मूल शब्द (धातु रूप )बमुश्किल चार-पाँच सौ हैं लेकिन शब्द संरचना कुछ ऐसी होती है कि व्याकरण, और शब्द की परिभाषा भी साथ में रहती है.
जब भारत से ज्ञान -विज्ञानं फैला तो लेटिन अमरीकी देशों चिल्ली एवं पेरू में वैदिक ज्ञान पहुँचा . चूँकि वे भौतिक-विज्ञान में रूचि रखने वाले भौतिक-वादी थे अतः जब ब्रह्म का रूपांतरण ब्रेन हुआ तो तात्पर्य तंत्रिका तन्त्र \ नर्व सिस्टम के भौतिक रूप तक सीमित हो कर रह गया .
जबकि एक कोशीय जीव से लेकर विशाल वृक्षों में तंत्रिका तन्त्र नहीं होता लेकिन चेतना एवं जीवनी शक्ति तो उनमे प्राणियों से भी अधिक होती है .
इस तरह तथ्यात्मक बात यह है कि ब्रह्म शब्द के लेटिन अनुवाद ब्रेन शब्द को जाने बिना आप ब्रह्म शब्द को भ्रामक धारणा में ले जाते हैं तो ब्रह्म को ब्रेन तक सीमित करने से वैज्ञानिक वर्ग अर्धसत्य में बंध कर रह जाता है अथवा आप जब धार्मिक-वैज्ञानिक साहित्य में लिखे तथ्यों को समझने का प्रयास कर रहे होते हैं तो आपके लिए भी ब्रह्म भ्रम बनकर रह जाता है.
सबसे पहले इस विषय को लेने का कारण यह हैकि एक तरफ तो यह मज़बूरी हैकि संस्कृत के मूल शब्दों का उपयोग किये बिना काम नहीं चल सकता तो दूसरी तरफ इन शब्दों को लेकर भ्रांतियां और पूर्वाग्रह स्थापित हो चुके हैं.आप मनोरंजक साहित्य और बोलचाल की भाषा में तो नए नए शब्द गढ़ सकते हैं लेकिन जब विषय दार्शनिक-वैज्ञानिक चल रहा होता है तो मूल शब्दों के मूल शब्दार्थों को जानना पहली आवश्यकता होती है.क्योंकि तभी तर्क संगत बात कही जा सकती है वर्ना तर्क पर कुतर्क हावी हो जाते हैं.गंभीर वार्ताएं वाद-विवाद का रूप लेकर बिना परिणाम दिए ही समाप्त हो जाती है.जैसें कि ब्रह्म शब्द को ही लें .
अध्ययन-चिंतन-मनन करने की क्रिया को ब्रह्म में रमण करना कहा जाता है.इस क्रिया को करने वाला व्यक्ति ब्रह्मण कहलाता है,ब्रह्म + रमण में ब्रह्म के पिछें तथा रमण के आगे रम का उपयोग हो रहा है.ब्रह्म और रमण का समास होने पर रम का उच्चारण दो बार नहीं होकर एक बार ही होता है तब ब्रह्म + रमण = ब्रह्मण उच्चारित होता है.ब्रह्मण परम्परा की पालना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है.
ब्राह्मण शब्द का प्रयोग-उपयोग अध्ययन-चिन्तन-मनन तत्पश्च्यात अध्यापन कार्य करने वाले अध्यापक के लिए किया जाता है.लेकिन जिस समय भारत में ब्रह्मण परमपरा की पालना करने वाले ब्राह्मणों (अध्यापकों) के वर्चस्व वाली व्यवस्था पद्धति चल रही थी तब हर कोई ब्राह्मण बनने का इच्छुक था जैसे कि आज हर कोई बनियाँ बनना चाहता है.
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