कल्याणकारी = श्रेष्ट + इष्ट.
श्रेष्ट = प्रिय + उचित.
इष्ट = इच्छित,अपेक्षित + हितकारी.
अर्थात जो सभी वर्गों को प्रिय लगे,सभी अपनी प्रिय स्थिति, प्रिय वस्तु , प्रिय जॉब चुन सके , प्रिय लगे उस विषय की शिक्षा ले सके, प्रिय लगे वैसा मनोरंजन कर सके, प्रिय क्रीड़ाएँ कर सके, प्रिय को जीवन साथी चुन सके ऐसी व्यवस्था पद्धतियाँ होनी चाहिए. लेकिन उस के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाये कि वे अनुचित नहीं,उचित होनी चाहिए. मैं एक ऐसी ही व्यवस्था पद्धति स्थापित करना चाहता हूँ. लेकिन यह तभी संभव होगा जब सर्वसम्मति होगी. सर्वसम्मति तब होगी जब संसद में सभी अपने-अपने दिमाग़ से सोचने के लिए स्वतंत्र होंगे,किसी एक हाईकमान तानाशाह के अन्धानुयाई नहीं हों. क्योंकि किसी एक वर्ग के लिए जो उचित हो, हो सकता है कि वह अन्य वर्ग को उचित न लगे. वे उस व्यवस्था को अपने वर्ग पर लागू न भी होनें दें. कुछ व्यवस्थाएं ऐसी भी हो सकती हैं जो किसी वर्ग को प्रिय तो लगें लेकिन उस वर्ग के लिए उचित न हों।उस स्थिति में मेरा धर्म बनता है कि मैं प्रत्येक सांसद को संतोषजनक, तर्कसंगत और वैज्ञानिक कारण बता सकूँ, यह तभी सम्भव होगा जब प्रत्येक सांसद दो योग्यतायें रखे.
1.वह ख़ुद अपने दिमाग से सोचने के योग्य हो, सोचने का काम हाईकमान अथवा दल पर न छोड़े.
2.वो अपने क्षेत्र की जनता का प्रिय हो और स्थाई प्रतिनिधित्व कर सकता हो अर्थात निर्दलीय हो, दल-दल में धँसा दलीय प्रतिनिधि नहीं हो; जनता का नेता,जनता का प्रतिनिधि हो,मात्र अपने हाई कमान का समर्थक बन कर रहने वाला नहीं हो.
मैं एक ऐसी लोक प्रशासन प्रणाली स्थापित करवा सकता हूँ जिस में सभी अपनी-अपनी इच्छानुसार जीवनशैली और दैनिकचर्या का चुनाव कर सकेंगे, इच्छानुसार जॉब/रोज़गार चुन सकेंगे फिर भी वे इच्छाएं उनके हित में होंगी. उनका भी और दूसरों का भी अहित नहीं होना चाहिए इस बिंदु पर भी सावधानी रखी जा सके. ऐसी प्रणाली साथ में हो. इस तरह यह एक जटिल प्रणाली होगी जो सभी वर्गों तथा व्यक्तियों को प्रिय के साथ-साथ उचित तथा इच्छित के साथ-साथ हितकारी भी लगे. चार चीज़ों का योग तब कल्याणकारी फिर विविध प्रकार के वर्गों के लिए अलग-अलग कल्याणकारी स्थिति, उसमें फिर यह गारंटी कि जब तक एक-एक सांसद सहमत नहीं हो जाए, सर्व सम्मति नहीं हो जाए, योजना लागू भी नहीं होगी. ऐसी स्थिति में प्रत्येक सांसद में स्वविवेक से सोचने की योग्यता होनी ज़रूरी है।
हाँ ! आप कल्याणकारी शब्द की परिधि में आने वाले चारों शब्दों से अनभिज्ञ रह कर तो कैसी भी योजना बना सकते हैं लेकिन सही मायने में कल्याणकारी व्यवस्था तभी बना सकते हैं जब सभी सांसद स्वविवेक से स्व के अधीन होकर स्वीकार करने के लिए स्वतंत्र हों. जिस राष्ट्र में संसद और सांसद ही स्वतंत्र नहीं हैं वहाँ सत्ता परिवर्तन कितना ही हो जाए, स्वतंत्रता की कल्पना नहीं की जा सकती है.
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