"विश्वोंमुखी अक्षय काल हूँ" का संकेत भाषा के तीसरे आयाम भूतकाल-वर्तमानकाल-भविष्यत् काल की तरफ़ है.
इस तरह "अ" का उपयोग जिस शब्द के आगे किया गया है उसका अर्थ उस शब्द के विपरीत समझें न की "नहीं" के रूप में समझें.
द्वंद्व समास की विशेषता है एक ही शब्द में पूरे वाक्य जितना अर्थ बता देना.
इसके साथ जब भूतकाल-वर्तमानकाल-भविष्यत् काल की तरफ संकेत देने वाले अक्षर था,थी,थे;हूँ, है;गा, गे, गी; का उपयोग करके शब्द रचना करने में पारंगत हो जाये हैं तो आप बिना व्याकरण के सिर्फ़ शब्द ब्रह्म से काम चला लेते हैं.
आप जब मौन रह कर सिर्फ़ संकेत से ही अपनी भाव अभिव्यक्ति कर लेते हैं तो उसे शब्द ब्रह्म का उल्लंघन कहा जाता है.लेकिन जब आप एकांत में रहते हुए सिर्फ़ सोचते हैं और वे विचार उस विषय से जुड़े व्यक्तियों के ब्रह्म में स्वतः उपज जाते हैं तो उसे शब्द ब्रह्म का उल्लंघन करने वाली एकात्म-ब्रह्म परंपरा कहा गया है.
लेकिन जब आप ब्रह्म परंपरा और वेद परंपरा दोनों को यानि भाव और अभिव्यक्ति(भावाभिव्यक्ति) दोनों को एक साथ लेकर चलते हैं तो इसे अद्वैत परंपरा कहा जाता है.
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