भाषा में वाक्य जब क्षर होता है तो शब्द बनकर बिखर जाता है. शब्द जब क्षर होता है, टूटता है तो अक्षर बन कर बिखर जाता है. लेकिन अक्षर उसे कहते हैं जो क्षर होने (टूटने) के विपरीत परस्पर जुड़ता है और शब्द बनता है. इस तरह अक्षर भाषा की मूल रचना, Raw material है .इन अक्षरों में सबसे पहला और सबसे प्रभावशाली अक्षर है
अ. अंग्रेजी की
अ ब स द में भी
अ पहला अक्षर है. अल्फाबेटिक प्रणाली की मूल अरबी/उर्दू में भी
अलिफ़-बे-पे-ते-टे-से; में भी पहला अक्षर
अ है. अधिकांश भाषाओं में ऐसा ही है. यह एक ऐसा स्वर/सुर है जो गूंगा भी बोल सकता है.
लेकिन साहित्यिक शब्दावली में जब किसी शब्द के आगे अ लग जाता है तो उसका तत्वार्थ "नहीं" लिया जाता है. जब कि यह ग़लत है जैसे कि अज्ञान का अर्थ ज्ञान नहीं होना लिया जाता है जब कि यह ग़लत है. अ को 'नहीं' के अर्थ में लेना शब्द के अर्थ को अनर्थ कर देता है.
ज्ञान नहीं होने के अर्थ में अनभिज्ञता शब्द का उपयोग होता है. अर्थात जहाँ अन और अंग्रेजी में भी un जुड़ कर unknown बनता है तब नहीं की तरह अर्थ देता है. जब कि शब्द के आगे अ लगने से मूल शब्द के विपरीत अर्थ हो जाता है अर्थात अज्ञान का अर्थ है खोटा ज्ञान,ग़लत ज्ञान, ग़लत जानकारी, मूल ज्ञान के विपरीत ज्ञान.
ज्ञानी = पुण्य का संचय रखने वाला
अनभिज्ञ = निष्पाप, अनघ,अनघड
अज्ञानी = पाप से ग्रसित
अव्यवस्था =जैसी व्यवस्था होनी चाहिए उससे उलट व्यवस्था
अ
इस तरह अ अपने आप में भगवान का विभूति रूप है.
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