When the British Government was preparing to transfer powers, the legendary of the movement, BAPU had said two things. 1. This is not freedom it's just transfer of rulling (but that will be powerless), so we have to fight a war of independence NOW. 2. Now the Congress (House) was to end, we have to restore the Democratic approach,admittedly. We probably did not understand his planning or probably understood it,so he was killed or executed. We have sufferred a lot. Now it's time to make the Indian politics free from parties.



(1.) निःसंदेह आपने यह तो सुन रखा होगा कि पंचायती राज व्यवस्था सदा से ही भारतीय गणतंत्र की प्रमुख विशेषता रही है। इस व्यवस्था की गरिमा/गहराई इस तथ्य पर टिकी थी कि 1. पंचों-सरपंचों के चुनाव सर्व सम्मति से होते थे। 2. अनेक दल /पार्टियाँ नहीं होती थीं। इसी सूत्र / फ़ॉर्मूला से अपने क्षेत्र का स्थाई निर्दलीय जनप्रतिनिधि चुनाव में खड़ा करके उसे सांसद और विधायक चुनें।

(1.) No doubt you've heard that Panchayati Raj is always key feature of the Indian Republic. The dignity of the system / depth based on the fact that 1. the election of jury - sarpanchs were held unanimously. 2. there were not Many parties. Elect the MPs and MLAs of your area by fixing independent public representatives to fight elections by the same Formula.

(2.) भारत में स्वायंभू अधिनायक को सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है जबकि इसका ग्रीक अनुवाद डिक्टेटर प्रचलन में है, जो बदनाम शब्द है। स्वायंभू अधिनायक यानी किसी एक व्यक्ति के ही ब्रह्म/ब्रेन/दिमाग़/द्रष्टिकोण का नेतृत्व हो। स्वायंभू तीन वर्गों में वर्गीकृत कहे गए हैं-1.ब्रह्म परम्परा में ब्राह्मण 2.वैष्णव में संत 3.शैव में शम्भू। भारतीय जनमानस एक तरफ़ तो केन्द्रीय सत्ता में एक ही ज़िम्मेदार-जवाबदार स्वायमभू चाहता है ताकि उस से जबाब मांग सके तो दूसरी तरफ सत्ता का इतना अधिक विकेन्द्रीयकरण चाहता है कि जहाँ भी पाँच यार मिल गए स्व का तन्त्र बनाने की पंचायती स्वतंत्रता होनी चाहिए.

(2.) In India Swaymbhu esteemed leader is considered honerable while the Greek translation of this word dictator is infamous in circulation. Swaymbhu esteemed leader means the leadership of a single mastermind having divine brain. Swayambhu is classified into three different words of three traditional language's categories -1.BRAHMAN in Brahmin tradition 2.SAINT in Vaishnava 3.SHAMBHU in Shaiv tradition. The public wish a single person to be responsible in central government so that he can be asked for his duties. On the other hand, wish so much decentralization of power to find the five-man should have freedom to make the Panchayat.

(3.) भारतीय परिवार करोड़ों का दान दे सकते हैं लेकिन आयकर से बचने का हर संभव उपाय ढूँढते हैं. पूजापाठ में समर्पित हो सकते हैं लेकिन संविधान के नियमों में छेद करना बौद्धिक कुशलता मानी जाती है. क्योंकि अवचेतन में एक अवधारणा होती है कि संविधान तो मानव निर्मित होता है. अतः भारतीयों के लिए अनुबंध वाली वैदिक-व्यवस्था-प्रणालियाँ नहीं बल्कि आत्म-अनुशासन वाली ब्रह्मणी-व्यवस्था-पद्धतियाँ अनुकूल रहती हैं. उन्हीं को पुनर्स्थापित करना चाहिए.

(3.) Indian families can give donations of millions, but they search for every possible way to avoid income tax. They can be dedicated to worship but making hole in the rules of the costitution is considerd intellectual skills. Because their subconscious has a concept that the constitution is just man-made. So instead of the contract basis vedic system, the brahmin system is favorable for the Indians.

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।


गुरुवार, 28 जून 2012

मतदाता चाहेंगे तभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत संभव है!




      वर्त्तमान में पूंजी के लिए किये जाने वाले आर्थिक भ्रष्टाचार को ही तूल दिया जा रहा है। जबकि
सुख के नाम पर किये जाने वाले देहिक दुराचार!
मनोविकार के कारण होने वाले सामाजिक-पारिवारिक अत्याचार!
धर्म के नाम पर किये जाने वाले भावनात्मक व्यभिचार!
अनुशासन के नाम पर किये जाने वाले नाटकीय शिष्टाचार! 
विरोध प्रदर्शन के नाम पर किये जाने वाले अशोभनीय कदाचार!
समर्थन के नाम पर किये जाने वाले हीनता प्रदर्शन का अनाचार!
और न जाने आचरण की कितने तरह की दुर्बलताएँ आज हम भारतीयों में आ गयी हैं.
     इन्हीं  कारणों से भौतिक-वैज्ञानिक यंत्रों के माध्यम से साधन-सुविधाओं का इतना विकास होने के उपरांत हम सुखों से वंचित और अभावों से ग्रसित हैं,नितनए अभाव पैदा हो रहे हैं।सिर्फ एक मात्र इस कारण से कि उपलब्ध संसाधनों का उपयोग व्यवस्थित तरीके से नहीं हो पा रहा है.सब कुछ अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया है और निरंतर चढ़ता जा रहा है।
     इस पूरी स्थिति का विस्तार से वर्णन करने के स्थान परअंततः एक वाक्य में अभिव्यक्त करें तो वह होगा "विषमताओं से पैदा हुए क्लेश से घिरे हम भारतीय, आज सम ( हार्मोनी,सुर) में रहने को तरस गए हैं."
      जिस तरह उलझा हुआ कच्चा सूत सुलझाने के व्यर्थ परिश्रम से अच्छा होता है सूत को पींद कर नया सूत कात लेना.उसी तरह बिखर चुकी,अव्यवस्थित हो चुकी अव्यवस्था को पुनः व्यवस्थित करने का एकमात्र  तरिका है, भारत के चारों कोनो मे पड़ी अतिरिक्त भूमि पर नए सिरे से एक नया भव्य महा भारत बसाना शुरू किया जाए.जिसे तीन प्रकार के भारत में वर्गीकृत कर के व्यवस्थित करके प्रतिष्ठित किया जाए.उस नए व्यवस्थित भारत में अव्यवस्थित भारत के भारतीय स्थानांतरित होते जाएँ तो हम आगामी दो से तीन दशक के अन्दर-अन्दर शैक्षणिक स्तर में पुनः विश्वगुरु के पद को प्राप्त कर लेंगे, आर्थिक स्तर पर पुनः सोने की चिड़िया का खिताब जय कर सकते हैं और वैश्विक व्यवहार में पुनः उच्च-आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त कर के सर्वप्रिय बन सकते हैं.
      चूँकि यह योजना कई योजन दूर तक,समय तक चलेगी तब जा कर एक वैभवशाली और सुरक्षित भारत बनेगा जो धरती पर मनुष्य जाति को राष्ट्र नाम से होने वाले लड़ाई झगड़े से मुक्ति मिलेगी अतः इसके लिए मैं कह सकता हूँ कि मैने मनुष्य योनी में पैदा होने का और एक भारतीय होने का धर्म निभाते हुए दो काम किये हैं.
    एक तरफ उस सत्य को जाना है जो बहुत ही छोटा सा और समझने में सरल सा है। लेकिन जिसको लेकर तथाकथित धर्माचार्यों और वैज्ञानिकों ने अनेक भ्रांतियां फैला रखी है जिस कारण से धार्मिक-साहित्य जो वैज्ञानिक भी है, वह आत्म-विश्वास पैदा करने वाला उच्च कोटि का वैज्ञानिक-साहित्य नहीं रह कर एक सजावटी पुस्तक-माला बन कर रह गया है. 
    यहाँ तक कि धार्मिक साहित्य में प्रयुक्त होने वाले वैज्ञानिक शब्दकोष के शब्दों का भी तथाकथित धर्माचार्यों ने पेटेंट करा लिया है और उन्हें समाज में वैमनष्य फैलाने, अबुद्ध लोगों को भावनात्मक बंधन में बाँधने और अर्थोपार्जन के लिए काम में ले रहे.अतः एक तरफ तो मैंने शिक्षा के स्तर को सर्वोच्चस्तर पर पहुँचाने के लिए भरपूर अध्ययन-चिंतन-मनन किया है तो दूसरी तरफ इस ध्रुव सत्य को भी स्वीकार किया है कि 
"भूखे भजन न होय गोपाला लेले तेरी कंठी माला" ।
     जब मैं यह कह रहा हूँ कि एक सिरे से नया भारत बसाया जाए तो इसका अर्थ यह भी नहीं है कि नए भारत को बसाने के लिए बहुत भारी बजट की तब तक आवशकता पड़ती रहेगी जब तक पूरा भारत बस नहीं जाए बल्कि यह एक ऐसी परियोजना है जो अपनी लागत का धन खुद उपजायेगी बस शर्त यही है कि  होने वाली आय को इसी परियोजना में पुनर्निवेश किया जाये.
     न तो मैंने N.G.O. बनाकर सरकारी धन को चूना लगाया है और न ही मैं चंदा लेने वाला भिक्षुक ही हूँ बल्कि गौरवशाली व्यवहार को बनाये रखकर अपने बलबूते पर मैंने यह तैयारी की है। इस तप में मेरे परिवार और मित्रों ने भी तप किया है। अब यदि आप भारतीय होने और मतदाता होने का धर्म नहीं निभा पाएँगे तो मेरी मेहनत का आप लाभ नहीं उठा पाएँगे।
     प्रायोगिक स्तर पर काम करते हुए, प्रयोग का परिणाम देखते हुए दार्शनिक स्तर पर अध्ययन चिंतन मनन करते हुए जो आनंदानुभूति प्राप्त कर ली है उसे मैं एक अतुलनीय लाभ के रूप में महसूस कर रहा हूँ अतः यदि मेरा परिश्रम काम नहीं आया तो वह मेरा नहीं आपका नुकसान होगा।
       मैं तो यहाँ ब्रह्म में रमण करने वाला हूँ अतः काल में बँधा हुआ नहीं हूँ मुक्त हूँ। यदि अभी समय नहीं पका है तो आगामी जीवन में लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा और यदि आप लोग अपने अपने झुण्ड/दल बनाकर भेड़ियों, सियारों और श्वानों की तरह एक दूसरे झुण्ड पर गुर्राने चिल्लाने और भौंकने के इतने आदी हो गए हैं कि  इस योजना पर सर्वसम्मति बनाना आपके लिए संभव नहीं है तो फिर निकट भविष्य में एक साथ होने वाले विश्वयुद्ध और गृहयुद्ध में अपनी तबाही देखने के लिए तैयार रहें।
     यदि आपका समर्थन है तो आप तीन वर्गों में वर्गीकृत तीन और चौथे वर्ग के रूप में तीनों वर्गों की योग्यता रखने वाले योगी रूप में आगे आयें और संपर्क करें। इन चारों वर्गों के लिए सांख्य[सिद्धांत, थ्योरी,  प्रिंसिपल, अवधारणा, विचार) तथा योग (प्रयोग उपयोग व्यवहारिक संयोग]  को इस ब्लॉग श्रृंखला में,  प्रत्येक ब्लॉग में अलग अलग तरीके से संपादित,आपको पढने को मिल जायेंगे अर्थात ऊपर[दिमाग] में  वैचारिक स्तर पर समझने की बातें हैं, तो नीचे धरातल पर है कि आखिर करना क्या है?  
    अभी प्रथम चरण में एक ही अद्वेत काम करना है। एक पक्ष है भारत की साँस्कृतिक पृष्ठ भूमि को, भारत को और भारतीयता को यानि अपने आप को समझना है। दूसरा पक्ष यह समझना है कि हमारी शासन-प्रशासन प्रणाली की मूल संरचना तो सर्वोतम है लेकिन कुछ ऐसी तुच्छ त्रुटियाँ है जिनके कारण हमारा यह शासक-प्रशासक वर्ग बन्धक बना हुआ है.उन तुच्छ त्रुटियों Errors को निकालने के लिए प्रथम एक मात्र चरण यही है कि हम अपने जनप्रतिनिधियों को दल,पार्टी से और पार्टियों के हाई कमाण्डरों से मुक्त कराएँ. इस बन्धक प्रथा को समाप्त करने का इसका एकमात्र सरल तरीका यही है कि अपने क्षेत्र के जन-प्रतिनिधी  को निर्दलीय चुनें.
    भारत में सनातन धर्म चक्र सुरक्षित रहता है अतः जब भी कल्प अथवा युग का अंत होकर आदिकाल आता है तो वह भारत से ही शुरू होता है अतः प्रतेक चीज की तरह प्रजातंत्र भी भारत की ही देन है।लेकिन भारतीय प्रजातान्त्रिक प्रणाली में पार्टीबाजी कभी भी नहीं रही,न हीं होती है और न ही सभी जन समुदायों [मानसिक प्रजातियों] को एक ही कमान से हाँके जाने की प्रथा है।
     अतः प्रजातंत्र में साधारण को भी मतदाता बनने का जो असाधारण अधिकार है उसका उपयोग करके मतदाता ही अपने जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता दिला कर यानि दलदल से बन्धन मुक्त करवा कर भारत को असली स्वतंत्रता दिलाने के प्रथम चरण को पूरा कर सकता है बाद के चरण एक के बाद एक स्वतः उठते चले जायेंगे. प्रथम चरण  पूरी तरह मतदाता पर निर्भर है क्योंकि इस कार्य में एक तरफ धन का दुरुपयोग करने वाले और दुखी करने वाले शासक दुर्योधन-दुशासन हैं जो हाथ जोड़ने का अभिनय करने वाले अभिनेता भी हैं वे इस लक्ष में अवरोध पैदा करेंगे तो दूसरी तरफ कोई भी सम्मानित, इज्जतदार और समर्थ भी हो ऐसे व्यक्तियों को मतदाता हाथ जोड़कर आगे लायेगा और उन्हें सक्रीय करेगा तब भ्रष्टाचार मुक्त भारत संभव होगा वर्ना तो कुत्ता गिरी तो चल ही रही है एक एक करके झुंडों का अभ्युदय हो ही रहा है.

सन्त मिलेंगे तो अवश्य बताऊंगा-गाँधी

        
 यह परियोजना 1995 से 1997 के बीच तक के दो साल के चिंतन के बाद जब दिमाग़ के ढाँचे में बनायी थी तब इस परियोजना का तरीक़ा जो दिमाग़ में था उसमे दान के सहयोग की कल्पना की गई थी और किसी साधु-सन्त को इसका केंद्र बनाकर इस परियोजना को अंजाम तक पहुँचाने का सोचा था तब उस समय की परियोजना के परिप्रेक्ष्य में यह वाक्य बनाया था.
     राष्ट्र में विद्यमान अतिरिक्त ऊर्जा और पड़े हुए अतिरिक्त संसाधनों का उपयोग करके एवं सेवानिवृतों के अनुभव एवं बेरोज़गारों की मानवीय ऊर्जा का उपयोग करके शिक्षा,पर्यावरण एवं संस्कृति का पुनरुत्थान करना.     
           लेकिन उस समय तक शायद समय पका नहीं था यानी राजनीति का दिमाग़ पूरा या अच्छी तरह सड़ा नहीं था. इसके समानांतर यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि उस समय तक इन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के संपर्क में नहीं आया था जो छठी शताब्दी में निर्धारित की गयी इस ड्रेस कोड परम्परा का धाप कर दुरूपयोग कर रहे हैं. उस समय तक तो मेरे दिमाग़ में यही था कि मैं जिस परम्परा के बारे में इतना कुछ जानता हूँ उसके बारे में ये लोग तो मुझ से अधिक जानते होंगे. लेकिन जब इनके सम्पर्क में आया तो आज़ादी की लड़ाई के महानायक गाँधी द्वारा इनके बारे में कहा गया एक वाक्य अक्सर याद आ जाता था. 
       एक बार किसी पत्रकार अथवा किसी अन्य  ने पूछा कि आप इन दिनों अनेक साधु-संतों से मिल रहे हैं. आप सबसे अधिक किस से प्रभावित हुए तो गाँधी का उत्तर था ; "अभी तक तो जो भी मिले व्यापारी मिले हैं, अगर  सन्त मिलेंगे तो अवश्य बताऊंगा ."