वर्त्तमान में पूंजी के लिए किये जाने वाले आर्थिक भ्रष्टाचार को ही तूल दिया जा रहा है। जबकि
सुख के नाम पर किये जाने वाले देहिक दुराचार!
मनोविकार के कारण होने वाले सामाजिक-पारिवारिक अत्याचार!
धर्म के नाम पर किये जाने वाले भावनात्मक व्यभिचार!
अनुशासन के नाम पर किये जाने वाले नाटकीय शिष्टाचार!
विरोध प्रदर्शन के नाम पर किये जाने वाले अशोभनीय कदाचार!
समर्थन के नाम पर किये जाने वाले हीनता प्रदर्शन का अनाचार!
और न जाने आचरण की कितने तरह की दुर्बलताएँ आज हम भारतीयों में आ गयी हैं.
इन्हीं कारणों से भौतिक-वैज्ञानिक यंत्रों के माध्यम से साधन-सुविधाओं का इतना विकास होने के उपरांत हम सुखों से वंचित और अभावों से ग्रसित हैं,नितनए अभाव पैदा हो रहे हैं।सिर्फ एक मात्र इस कारण से कि उपलब्ध संसाधनों का उपयोग व्यवस्थित तरीके से नहीं हो पा रहा है.सब कुछ अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया है और निरंतर चढ़ता जा रहा है।
इस पूरी स्थिति का विस्तार से वर्णन करने के स्थान परअंततः एक वाक्य में अभिव्यक्त करें तो वह होगा "विषमताओं से पैदा हुए क्लेश से घिरे हम भारतीय, आज सम ( हार्मोनी,सुर) में रहने को तरस गए हैं."
जिस तरह उलझा हुआ कच्चा सूत सुलझाने के व्यर्थ परिश्रम से अच्छा होता है सूत को पींद कर नया सूत कात लेना.उसी तरह बिखर चुकी,अव्यवस्थित हो चुकी अव्यवस्था को पुनः व्यवस्थित करने का एकमात्र तरिका है, भारत के चारों कोनो मे पड़ी अतिरिक्त भूमि पर नए सिरे से एक नया भव्य महा भारत बसाना शुरू किया जाए.जिसे तीन प्रकार के भारत में वर्गीकृत कर के व्यवस्थित करके प्रतिष्ठित किया जाए.उस नए व्यवस्थित भारत में अव्यवस्थित भारत के भारतीय स्थानांतरित होते जाएँ तो हम आगामी दो से तीन दशक के अन्दर-अन्दर शैक्षणिक स्तर में पुनः विश्वगुरु के पद को प्राप्त कर लेंगे, आर्थिक स्तर पर पुनः सोने की चिड़िया का खिताब जय कर सकते हैं और वैश्विक व्यवहार में पुनः उच्च-आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त कर के सर्वप्रिय बन सकते हैं.
चूँकि यह योजना कई योजन दूर तक,समय तक चलेगी तब जा कर एक वैभवशाली और सुरक्षित भारत बनेगा जो धरती पर मनुष्य जाति को राष्ट्र नाम से होने वाले लड़ाई झगड़े से मुक्ति मिलेगी अतः इसके लिए मैं कह सकता हूँ कि मैने मनुष्य योनी में पैदा होने का और एक भारतीय होने का धर्म निभाते हुए दो काम किये हैं.
एक तरफ उस सत्य को जाना है जो बहुत ही छोटा सा और समझने में सरल सा है। लेकिन जिसको लेकर तथाकथित धर्माचार्यों और वैज्ञानिकों ने अनेक भ्रांतियां फैला रखी है जिस कारण से धार्मिक-साहित्य जो वैज्ञानिक भी है, वह आत्म-विश्वास पैदा करने वाला उच्च कोटि का वैज्ञानिक-साहित्य नहीं रह कर एक सजावटी पुस्तक-माला बन कर रह गया है.
यहाँ तक कि धार्मिक साहित्य में प्रयुक्त होने वाले वैज्ञानिक शब्दकोष के शब्दों का भी तथाकथित धर्माचार्यों ने पेटेंट करा लिया है और उन्हें समाज में वैमनष्य फैलाने, अबुद्ध लोगों को भावनात्मक बंधन में बाँधने और अर्थोपार्जन के लिए काम में ले रहे.अतः एक तरफ तो मैंने शिक्षा के स्तर को सर्वोच्चस्तर पर पहुँचाने के लिए भरपूर अध्ययन-चिंतन-मनन किया है तो दूसरी तरफ इस ध्रुव सत्य को भी स्वीकार किया है कि
"भूखे भजन न होय गोपाला लेले तेरी कंठी माला" ।
जब मैं यह कह रहा हूँ कि एक सिरे से नया भारत बसाया जाए तो इसका अर्थ यह भी नहीं है कि नए भारत को बसाने के लिए बहुत भारी बजट की तब तक आवशकता पड़ती रहेगी जब तक पूरा भारत बस नहीं जाए बल्कि यह एक ऐसी परियोजना है जो अपनी लागत का धन खुद उपजायेगी बस शर्त यही है कि होने वाली आय को इसी परियोजना में पुनर्निवेश किया जाये.
न तो मैंने N.G.O. बनाकर सरकारी धन को चूना लगाया है और न ही मैं चंदा लेने वाला भिक्षुक ही हूँ बल्कि गौरवशाली व्यवहार को बनाये रखकर अपने बलबूते पर मैंने यह तैयारी की है। इस तप में मेरे परिवार और मित्रों ने भी तप किया है। अब यदि आप भारतीय होने और मतदाता होने का धर्म नहीं निभा पाएँगे तो मेरी मेहनत का आप लाभ नहीं उठा पाएँगे।
प्रायोगिक स्तर पर काम करते हुए, प्रयोग का परिणाम देखते हुए दार्शनिक स्तर पर अध्ययन चिंतन मनन करते हुए जो आनंदानुभूति प्राप्त कर ली है उसे मैं एक अतुलनीय लाभ के रूप में महसूस कर रहा हूँ अतः यदि मेरा परिश्रम काम नहीं आया तो वह मेरा नहीं आपका नुकसान होगा।
मैं तो यहाँ ब्रह्म में रमण करने वाला हूँ अतः काल में बँधा हुआ नहीं हूँ मुक्त हूँ। यदि अभी समय नहीं पका है तो आगामी जीवन में लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा और यदि आप लोग अपने अपने झुण्ड/दल बनाकर भेड़ियों, सियारों और श्वानों की तरह एक दूसरे झुण्ड पर गुर्राने चिल्लाने और भौंकने के इतने आदी हो गए हैं कि इस योजना पर सर्वसम्मति बनाना आपके लिए संभव नहीं है तो फिर निकट भविष्य में एक साथ होने वाले विश्वयुद्ध और गृहयुद्ध में अपनी तबाही देखने के लिए तैयार रहें।
यदि आपका समर्थन है तो आप तीन वर्गों में वर्गीकृत तीन और चौथे वर्ग के रूप में तीनों वर्गों की योग्यता रखने वाले योगी रूप में आगे आयें और संपर्क करें। इन चारों वर्गों के लिए सांख्य[सिद्धांत, थ्योरी, प्रिंसिपल, अवधारणा, विचार) तथा योग (प्रयोग उपयोग व्यवहारिक संयोग] को इस ब्लॉग श्रृंखला में, प्रत्येक ब्लॉग में अलग अलग तरीके से संपादित,आपको पढने को मिल जायेंगे अर्थात ऊपर[दिमाग] में वैचारिक स्तर पर समझने की बातें हैं, तो नीचे धरातल पर है कि आखिर करना क्या है?
अभी प्रथम चरण में एक ही अद्वेत काम करना है। एक पक्ष है भारत की साँस्कृतिक पृष्ठ भूमि को, भारत को और भारतीयता को यानि अपने आप को समझना है। दूसरा पक्ष यह समझना है कि हमारी शासन-प्रशासन प्रणाली की मूल संरचना तो सर्वोतम है लेकिन कुछ ऐसी तुच्छ त्रुटियाँ है जिनके कारण हमारा यह शासक-प्रशासक वर्ग बन्धक बना हुआ है.उन तुच्छ त्रुटियों Errors को निकालने के लिए प्रथम एक मात्र चरण यही है कि हम अपने जनप्रतिनिधियों को दल,पार्टी से और पार्टियों के हाई कमाण्डरों से मुक्त कराएँ. इस बन्धक प्रथा को समाप्त करने का इसका एकमात्र सरल तरीका यही है कि अपने क्षेत्र के जन-प्रतिनिधी को निर्दलीय चुनें.
भारत में सनातन धर्म चक्र सुरक्षित रहता है अतः जब भी कल्प अथवा युग का अंत होकर आदिकाल आता है तो वह भारत से ही शुरू होता है अतः प्रतेक चीज की तरह प्रजातंत्र भी भारत की ही देन है।लेकिन भारतीय प्रजातान्त्रिक प्रणाली में पार्टीबाजी कभी भी नहीं रही,न हीं होती है और न ही सभी जन समुदायों [मानसिक प्रजातियों] को एक ही कमान से हाँके जाने की प्रथा है।
अतः प्रजातंत्र में साधारण को भी मतदाता बनने का जो असाधारण अधिकार है उसका उपयोग करके मतदाता ही अपने जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता दिला कर यानि दलदल से बन्धन मुक्त करवा कर भारत को असली स्वतंत्रता दिलाने के प्रथम चरण को पूरा कर सकता है बाद के चरण एक के बाद एक स्वतः उठते चले जायेंगे. प्रथम चरण पूरी तरह मतदाता पर निर्भर है क्योंकि इस कार्य में एक तरफ धन का दुरुपयोग करने वाले और दुखी करने वाले शासक दुर्योधन-दुशासन हैं जो हाथ जोड़ने का अभिनय करने वाले अभिनेता भी हैं वे इस लक्ष में अवरोध पैदा करेंगे तो दूसरी तरफ कोई भी सम्मानित, इज्जतदार और समर्थ भी हो ऐसे व्यक्तियों को मतदाता हाथ जोड़कर आगे लायेगा और उन्हें सक्रीय करेगा तब भ्रष्टाचार मुक्त भारत संभव होगा वर्ना तो कुत्ता गिरी तो चल ही रही है एक एक करके झुंडों का अभ्युदय हो ही रहा है.