When the British Government was preparing to transfer powers, the legendary of the movement, BAPU had said two things. 1. This is not freedom it's just transfer of rulling (but that will be powerless), so we have to fight a war of independence NOW. 2. Now the Congress (House) was to end, we have to restore the Democratic approach,admittedly. We probably did not understand his planning or probably understood it,so he was killed or executed. We have sufferred a lot. Now it's time to make the Indian politics free from parties.



(1.) निःसंदेह आपने यह तो सुन रखा होगा कि पंचायती राज व्यवस्था सदा से ही भारतीय गणतंत्र की प्रमुख विशेषता रही है। इस व्यवस्था की गरिमा/गहराई इस तथ्य पर टिकी थी कि 1. पंचों-सरपंचों के चुनाव सर्व सम्मति से होते थे। 2. अनेक दल /पार्टियाँ नहीं होती थीं। इसी सूत्र / फ़ॉर्मूला से अपने क्षेत्र का स्थाई निर्दलीय जनप्रतिनिधि चुनाव में खड़ा करके उसे सांसद और विधायक चुनें।

(1.) No doubt you've heard that Panchayati Raj is always key feature of the Indian Republic. The dignity of the system / depth based on the fact that 1. the election of jury - sarpanchs were held unanimously. 2. there were not Many parties. Elect the MPs and MLAs of your area by fixing independent public representatives to fight elections by the same Formula.

(2.) भारत में स्वायंभू अधिनायक को सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है जबकि इसका ग्रीक अनुवाद डिक्टेटर प्रचलन में है, जो बदनाम शब्द है। स्वायंभू अधिनायक यानी किसी एक व्यक्ति के ही ब्रह्म/ब्रेन/दिमाग़/द्रष्टिकोण का नेतृत्व हो। स्वायंभू तीन वर्गों में वर्गीकृत कहे गए हैं-1.ब्रह्म परम्परा में ब्राह्मण 2.वैष्णव में संत 3.शैव में शम्भू। भारतीय जनमानस एक तरफ़ तो केन्द्रीय सत्ता में एक ही ज़िम्मेदार-जवाबदार स्वायमभू चाहता है ताकि उस से जबाब मांग सके तो दूसरी तरफ सत्ता का इतना अधिक विकेन्द्रीयकरण चाहता है कि जहाँ भी पाँच यार मिल गए स्व का तन्त्र बनाने की पंचायती स्वतंत्रता होनी चाहिए.

(2.) In India Swaymbhu esteemed leader is considered honerable while the Greek translation of this word dictator is infamous in circulation. Swaymbhu esteemed leader means the leadership of a single mastermind having divine brain. Swayambhu is classified into three different words of three traditional language's categories -1.BRAHMAN in Brahmin tradition 2.SAINT in Vaishnava 3.SHAMBHU in Shaiv tradition. The public wish a single person to be responsible in central government so that he can be asked for his duties. On the other hand, wish so much decentralization of power to find the five-man should have freedom to make the Panchayat.

(3.) भारतीय परिवार करोड़ों का दान दे सकते हैं लेकिन आयकर से बचने का हर संभव उपाय ढूँढते हैं. पूजापाठ में समर्पित हो सकते हैं लेकिन संविधान के नियमों में छेद करना बौद्धिक कुशलता मानी जाती है. क्योंकि अवचेतन में एक अवधारणा होती है कि संविधान तो मानव निर्मित होता है. अतः भारतीयों के लिए अनुबंध वाली वैदिक-व्यवस्था-प्रणालियाँ नहीं बल्कि आत्म-अनुशासन वाली ब्रह्मणी-व्यवस्था-पद्धतियाँ अनुकूल रहती हैं. उन्हीं को पुनर्स्थापित करना चाहिए.

(3.) Indian families can give donations of millions, but they search for every possible way to avoid income tax. They can be dedicated to worship but making hole in the rules of the costitution is considerd intellectual skills. Because their subconscious has a concept that the constitution is just man-made. So instead of the contract basis vedic system, the brahmin system is favorable for the Indians.

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।


शनिवार, 7 जून 2014

प्रिय पाठकों सादर नमस्कार ,
सबसे पहले कुछ धन्यवाद देना उचित होगा.पहला धन्यवाद तो यह कि लम्बे अंतराल के बाद जब मैं ब्लॉग को खोल कर देखता हूँ तो पता चलता है कि कुछ पाठक इसे लगातार पढ़ रहे हैं अतः इस बिंदु पर धन्यवाद.
पिछली पोस्ट मार्च में डाली थी तब चुनाव प्रचार जोरों पर था और मैंने चुनावी महाभारत संग्राम को नूरा कुस्ती नाम दिया था. है तो यह नूरा कुस्ती ही, लेकिन इस बार मतदाता के रूप में आपने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता सोंपी है अतः धन्यवाद.
अब यह बधाई का बिंदु भी बनता है कि हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी दृढ़ता से निर्णय ले रहे हैं और निर्णय के बिंदु एक तरफ सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में भी है तो दूसरी तरफ़ निर्णय लेने के लिए सत्ता का केंद्र प्रधान मंत्री कार्यालय को बनाया जा रहा है जो उचित भी है क्योंकि निर्णय तुरंत तभी हो सकता है जब निर्णय करने का अधिकार एक व्यक्ति के पास हो साथ ही साथ निर्णय उचित और प्रिय यानी श्रेष्ठ भी हो यह तभी संभव है जब केन्द्रीय व्यक्ति सभी से राय लेकर निर्णय करे.
भारत के इतिहास में सम्राट अशोक और बादशाह अकबर दोनों महान इसीलिए कहलाये क्योंकि सभी की राय लेकर स्वविवेक से दृढ़ता से निर्णय लेते थे जबकि दोनों निरक्षर थे. अतः राजनैतिक सत्ता पर बैठे व्यक्ति के लिए साक्षरता वाली डिग्री महत्वपूर्ण नहीं होती,महत्वपूर्ण होता है सभी के विचार सुने और स्वविवेक से निर्णय ले.
नरेंद्र मोदी सरकार कितना कुछ कर सकती है यह अभी भविष्य के गर्भ में है जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे इकोनोमिक्स और कोमर्स में फर्क समझ पाते है या नहीं. अभी तक का रुझान तो यही है कि मनमोहन सरकार की तरह प्रथम पांच वर्षों में आर्थिक विकास दर बढ़ेगी और अंतिम पांच वर्षों में भारत आर्थिक संकट में घिर जायेगा.
कारण स्पष्ट है कि मनमोहन सरकार माध्यम मार्गी विचारधारा वाले समूह की होते हुए भी वे विकास की परिभाषा निर्माण,मेनुफेक्चारिग,औद्योगिक करण,शहरी करण को ही समझ बैठे थे जबकि नरेंद्र मोदी सरकार तो उस समूह की है जिसे दक्षिण पंथी और पूंजीवादी विचारधारा की माना गया है. अतः मनमोहन सरकार से भी दो कदम आगे और तेजी से कदम बढ़ाते हुए मोदी सरकार 100 नए शहर और औद्योगिक विकास के मोडल पर काम कर रही है और साथ ही साथ उदारीकरण के नाम पर पिछली NDA सरककर की तरह सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को बेचने का काम करेगी तो मान कर चलें  शुरूआती आंकड़ों में भले ही अच्छे दिन आजायें लेकिन यदि प्राकृतिक उत्पादन की अर्थव्यवस्था वाले वन और गाँव इसी तरह नष्ट होते गए तो बुरे दिनों को आने से कोई नहीं रोक सकेगा.
कोमर्स को जानने वालों और वित्त [मुद्रा,पूंजी] को ही धन धन समझने वालों की बुद्धि में यह एक छोटासा तथ्य भी स्पष्ट नहीं होपाता कि जब तक कृषि,पशुपालन और वनोत्पादन पर निर्भर भारत की 80 प्रतिशत जनसख्या की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तब तक शहरी करण और औद्योगिक करण को विकास की परिभाषा मानने वाले राष्ट्रवादी धृतराष्ट्र के राष्ट्र  का भला होना संभव नहीं है.
देखिये आगे आगे होता है क्या! होगा वही जो मंजूरे खुदा नहीं बल्कि जमूरे खुदा होगा.
धन्यवाद !       

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

निर्णय विहीन चुनावी महाभारत घमासान

महाभारत युद्ध का उदेश्य एक महान भारत बनाना था. जिसमे एक पक्ष धृतराष्ट्र [ राष्ट्राध्यक्ष ] के सैंकड़ों पुत्र होते हैं जिनका नेत्रित्व धन का आयुधों में दुरूपयोग करने वाले दुर्योधन [राजनेता ] और दुशासन [ दुखी करने वाला प्रशासन ] होते हैं . 
दूसरा पक्ष पाण्डव पक्ष होता है जो गणराज्य व्यवस्था [ पंचायती राज व्यवस्था ] चाहता है और अपने कृषि,गोपालन,पशुपालन और वनोत्पदन की पूरी कीमत चाहता है यानिसरकाए द्वारा निर्धारित मूल्यों से स्वतंत्रता चाहता है.
लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान के चुनावी महा भारत में पाण्डव पक्ष नदारद है अतः यह सिर्फ दुर्योधनों की नूरा कुस्ती  है. कोई भी पक्ष आजाये यह सिर्फ राज्य सत्ता की बन्दर बाँट के सिवा कुछ भी नहीं है.
आज की आवश्यकता है सभी दल एक साथ बैठकर सर्वसम्मति से निर्णय करे और हमें विरासत में जो महाभारत मिला था उसे उसी तरह पुनः व्यवस्थित करें. तब ना सिर्फ भारत का भला होगा बल्कि पूरी दुनियां का भला होगा.

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

राजनैतिक भ्रष्टाचार से मुक्त स्वतन्त्र भारतराष्ट्र !


सर्वप्रथम तो यह चाहिये कि हम भ्रष्टाचार को पारिभाषित करें ।

यदि हम भ्रष्टाचार की परिभाषा यह बनाते हैं कि काम के एवज में अर्थ को प्राप्त करना ही भ्रष्टाचार है तो इसे हम कभी भी समाप्त नहीं कर सकते। वैसे भी यह भ्रष्टाचार नहीं सिर्फ रिश्वत या भेंट है।

क्योंकि जब अर्थव्यवस्था ही काम एवं अर्थ के गणित के आधार वाली, कामार्थ भाव वाली यानी Commercial  व्यवस्था होती है अर्थात् अर्थ-व्यवस्था का सेटअप ही Commercial होता है और अर्थ [ धन Wealth ] का अर्थ [ Meaning ] ही जब वित्त,पूँजी, मुद्रा, करेंसी Finance, money, currency होता है तो निःसन्देह कम से कम काम के एवज में अधिक से अधिक पैसा लेना बुद्धिमानी मान ली जाती है।
     
जब काम का चुनाव कार्य सन्तुष्टि Job satisfaction के अर्थ में नहीं लेकर पैसा कमाने के अर्थ में लिया जाने लग जाता है तो अधिक से अधिक पैसा कमाना स्वाभाविक आचरण में आ जाता है, तब उसे भ्रष्ट-आचरण कहने का अर्थ है भ्रष्टाचार के मूल कारण की तरफ से मुख फेरकर एक दूसरे को भ्रष्टाचारी कहना, यह अपने आप के प्रति भ्रष्टाचार है।

अब यदि आप कहें कि हम तो सत्ता में भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात कर रहे हैं तो फिर सत्ता के परिप्रेक्ष में भी समझना चाहिये ।
तीन तरह की सत्ताएं होती है जो हमेशा एक दूसरे की पूरक होती है। आज इन तीनों सत्ताओं में भ्रष्टाचार है।
     1. बौद्धिक सत्ताएं  Intellectual existences
     2. राजनैतिक सत्ताएं  Political government bodies
     3. आर्थिक सत्ताएं  Economically existences

यदि ये तीनों सत्ताएं एक दूसरे से समभाव रखते हुए प्रजा के हित में तंत्र ( व्यवस्था, सिस्टम, पद्धति Arrangements, managements, administration, system, method ) बनाने में सफल हो जाती हैं तब कहीं जाकर समुदाय एवं व्यक्ति अपने आचरण में शिष्टता रख सकता है।
   
जब बौद्धिक एवं राजनैतिक दोनों सत्ताओं का ध्येय आर्थिक सत्ता द्वारा खरीद लिया जाता है और फिर आर्थिक सत्ता के केन्द्र में वित्तीय सत्ताएं हो जाती है तब तो फिर वित्त का आदान-प्रदान भ्रष्टाचार न रहकर  शिष्टाचार हो जाता है और पूंजीपति भगवान की विभूति हो जाता है।
   
इसका अब आज की परिस्थितियों में एक ही तरीका है कि हम राजनीति को पूंजी निवेश, उच्च कमान और पूंजीपतियों से मुक्त करें। यह काम तीनों आयामों से एक साथ होना चाहिए।

1. इसका एक आयाम है, राजनैतिक पार्टी संगठनों को चाहिए कि वे अपने बंधक सांसदों को मुक्त, स्वतन्त्र, आज़ाद कर दे। यदि आप खुद आगे आकर ऐसा करते हैं तो आप की इज्जत रह जायेगी वरना एक दिन  ऐसा आयेगा जब आपको अपमानित होकर ऐसा स्वीकारना पड़ेगा।
   
आप कहते हैं कि आप ईमानदार हैं लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि आप भ्रष्ट हैं अथवा सत्तारूढ पार्टी भ्रष्ट है। अथवा विपक्ष भी भ्रष्ट है। अगर आप राष्ट्र के प्रति ईमानदार हैं। तो आप को यह मुर्खतापूर्ण स्वार्थ छोड़ना पडेगा जैसे कि आपका मतदाता बैंक, आपकी पार्टी, आपके कार्यकर्ता, आपकी लॉबी इत्यादि।

2. दूसरा आयाम है कि चुनाव आयोग कुछ ऐसी व्यवस्था करे कि निर्दलीय व्यक्ति भी अपना परिचय ज़िले एवं तहसील स्तर पर दे सके।
   
इसके लिए हरेक तहसील एवं जिले में एक-एक  राजकीय स्थान हों। जहां चुनाव प्रचार से लेकर, चुनाव के बाद भी जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारियों से जनसाधारण  हो या विशिष्ट व्यक्ति सभी एक साथ निसंकोच मिल सकें और जिले के विकास के लिए एक जुट हों सकें।

3. तीसरा आयाम मतदाता के लिए है कि  आप अपने अपने गली,मोहल्ले,गाँव,बस्ती,कोलोनी.सोसाईटी इत्यादि में अपना राजनैतिक जनप्रतिनिधि चुने औए वे सभी एक स्थान पर एकजुट होकर अपने क्षेत्र का प्रतिनिधि चुन लें। इससे चुनाव आयोग पर अतिरिक्त भार भी नहीं पडेगा।
   
इन तीनो आयामों से स्वतंत्र, स्वाधीन, स्वविवेक, निष्पक्ष जनप्रतिनिधि चुनेंगे तब भारत की स्वतंत्रता का पहला चरण शुरू होगा। तब राजनैतिक भ्रष्टाचार समाप्त होगा।

अभी न तो भारत आजाद है और न ही राजनीतिज्ञ. लेकिन जनता अवश्य ही धुँआधार, चंचल, असंतुलित, अव्यवस्थित, बेलगाम, अनियंत्रित, निरंकुश, स्वेच्छाचारी, स्वच्छंद, हठी, मनमौजी, असंयत हो गयी है।

क्यों ? क्योंकि:- अंधेर नगरी चौपट राजा, टके-सेर भाजी टके-सेर खाजा।

अब यदि राजनेताओं में थोड़ी भी इंसानियत बची हुयी है, तो वे अपनी अपनी डफली और अपना-अपना राग अलापने के स्थान पर सर्वसम्मति से एक सर्व-कल्याणकारी व्यवस्था बनाने के लिए ख़ुद पहल करें।
क्रमशः

अन्ना से खुला अनुरोध ! The open request to Anna !

आदरणीय अन्नाजी का मैं इस बात पर धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने भारत को यह सम्भावना दिखा दी कि यदि मुद्दा उचित हो तो जनसमर्थन मिलता है और वह मिडिया [नारदीय परम्परा] के कारण मिलता है।

लेकिन यह हजारे अन्ना के कंधे पर बन्दूक रख कर उन लोगों पर फायर करने का एक आन्दोलन माना जायेगा जो शीर्ष पर बैठे हैं। आन्दोलन  का उद्देश्य है भ्रष्टाचार मुक्त भारत। यह एक विशेष बिन्दु पर केन्द्रित है, रिश्वतखोरी बन्द करना।


इसी तरह काले धन को विदेशों से लाना और सोनिया गाँधी सहित कांग्रेस को हटाना, इसके लिए बाबा रामदेव ने अपने अन्धानुयायियों के कन्धों का बन्दूक रखने के लिए उपयोग किया है। 


हजारे अन्ना का आन्दोलन बहुत उचित है हर व्यक्ति को इसका नैतिक समर्थक करना चाहिये। लेकिन यहाँ दो प्रश्न खड़े होते हैं।


क्या लोकपाल नाम से या अन्य किसी भी नाम से जो एक सरकारी, अर्धसरकारी या ग़ैर सरकारी संस्था और बन जायेगी और जो लोग उस संस्था के कर्ताधर्ता होंगे वे क्या किसी अन्य लोक से शिक्षित होकर या धार्मिक होकर अतिरिक्त संयमी लोग होंगे ?


दूसरा प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या भ्रष्टाचार की सीमा या परिभाषा वित्तीय लेनदेन तक सीमित है। समस्या बेईमानी या ईमानदारी की नहीं है। नीति एवं अनीति की नहीं है। समस्या यह है कि आज जो भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपनी सत्ता बनाना चाहता है या सत्ता तक पहुँचना चाहता है, उसने भी आखिर वही पाठ्यक्रम तो पढ़ रखा है जिस पाठ्यक्रम ने पढ़ने वालों को अनभिज्ञ से अज्ञानी बना दिया है। गीता में एक शब्द आया है "अनघ"। इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता हैः अनघड़, अनभिज्ञ, निष्पाप।

जब तक व्यक्ति अनभिज्ञ है, तब तक वह निष्पाप होता है लेकिन जब वह ज्ञान के स्थान पर अज्ञान (खोटा ज्ञान, ग़लत जानकारी) का संग्रह कर लेता है तो वह पाप से ग्रसित माना जाता है। व्यक्ति अपनी अनभिज्ञता को मिटा कर ही तो ज्ञान लेना चाहता है यानी निष्पाप से पुण्यवान बनना चाहता है लेकिन अज्ञान के सम्पर्क में आकर वह पाप से ग्रसित हो जाता है।


जॉर्ज बर्नाड शा के शब्दों में यही बात: "व्यक्ति को ग़लत जानकारियों से हमेशा सावधान रहना चाहिये। ग़लत ज्ञान अनभिज्ञता से कहीं ज्यादा ख़तरनाक होता है।"


चूँकि आप जो टीम के सदस्य हैं वे सरकारी नौकरियों के एक विषय-विशेष में बँधे हुए हैं अतः आप भ्रष्टाचार के उस बीज से अनभिज्ञ हैं जो जड़ें फैलाता है।


यह तो ज़मीन से जुड़े हजारे अन्ना का कन्धा मिल गया जिसका उपयोग आपने राजनीति में प्रवेश करने का दरवाजा बनाने के लिए कर लिया है।    


भ्रष्टाचार/Corruption एक बहुत बड़ा और भारी-भरकम शब्द है। आज ऐसा कौन सा क्षेत्र, समाज, विषय और व्यक्ति है जो आचरण के परिप्रेक्ष्य में भ्रष्ट नहीं है। सबसे पहले तो मेरे चरित्र को ही लें। यदि भ्रष्टाचार की मूल परिभाषा "उत्तरदायित्व निभाने में अयोग्य होते हुए भी सिर्फ अर्थोपार्जन की कामना के लिए काम करता है तो वह भ्रष्ट आचरण कहलायेगा"  के अंतर्गत लें तो आज मैं नारद सबसे भ्रष्ट हूँ। यह बात अलग है कि विश्व परिदृश्य में, मैं भी अन्य भारतीयों की तरह सबसे कम भ्रष्ट हूँ, क्योंकि मुझ मे भी वही संस्कार हैं जो एक भारतीय भू-भाग में परवरिश पाने वाले में स्वाभाविक तौर पर पनप जाते हैं।        

एक बहुत बड़े अखबार के प्रधान सम्पादक जब यह लिखते हैं कि "भारत में युरोपियन लोगों के आने के बाद पत्रकारिता का प्रारम्भ हुआ उससे पहले नहीं था।" तो उनकी यह जानकारी मनगढ़न्त जानकारी है। अपने मन से गढ़ी हुर्ह जानकारी है अतः इस विषय में वे अनघ भी नहीं रहे अज्ञानी हो गये। ऐसे अखबार वालों से क्या अपेक्षा की जा सकती है! जब तक आप मुझ नारद को अच्छी तरह नहीं जानेंगे कल्याणकारी पत्रकारिता नहीं कर सकते। क्योंकि यह जो आज की पत्रकारिता है, वह व्यापारिक पत्रकारिता है, जो कि निःसन्देह यूरोपियन लोगों की भारत को मानसिक रूप से अपंग बना कर, brain wash  करके अपनी स्वार्थपूर्ण विचारधारा को स्थापित करने के लिए भारत को उनकी देन है। 


अब तक मैंने अपने बारे में काफ़ी कुछ बताया है। क्योंकि आपने मेरे चरित्र को विद्वान के स्थान पर विदूषक बना दिया है। ज्ञानी के स्थान पर चापलूस ग़ुलाम बना दिया। समन्वयक के स्थान पर चुगलखोर बना दिया। आज सबसे अधिक पतन मेरा हुआ है... क्यों ?...क्योंकि मैं बिकने लग गया हूँ। आज मेरी बौद्धिकता वित्तीय सत्ता की ग़ुलाम है। वित्तीय सत्ता जो भी चाहती है अवश हुआ वैसा ही लिखना, छापना और प्रसारित करना पड़ता है। कभी मेरी प्रतिष्ठा ऐसी थी कि सम्राट तक मुझे सम्मान देते थे, लेकिन आज मुझे हर कोई दुत्कार देता है... क्यों ?...क्योंकि पत्रकारिता व्यापार बन कर रोज़गार का माध्यम बन गया है।


अन्ना हजारे एक जाना पहचाना नाम था अतः कुछ लोगों ने इस जाने-पहचाने कन्धे पर रख कर बंदूकें चलानी शुरू कर दी और मिडिया ने T.R.P. की सम्भावना / Scope तलाश ली। लो साहब आन्दोलन सफल हो गया।   


वर्तमान काल खण्ड की एक भारी भरकम समस्या यह भी है कि बहुत अधिक बोलना, कहना, लिखना शुरू हो गया है। यह गतिविधि ज्ञान-विज्ञान के विस्तार के अनुकूल है क्योंकि वेद ( विज्ञान एवं विद्याओं ) का विस्तार श्रुति और लेखन परम्परा से होता है। लेकिन समस्या का मूल कारण यह नहीं है, मूल कारण है कि बोलने, कहने, लिखने वाले को व्याकरण का ज्ञान तो है लेकिन उसमें काम आने वाले शब्दों के अर्थों से वह अनभिज्ञ है। इस कारण जो सुन-पढ़ रहा होता है वह ज्ञान-विज्ञान के स्थान पर अज्ञान-अविद्या को ग्रहण कर लेता है। हिन्दी का स्तर कमज़ोर रहने का कारण भी यही है...संस्कृतजन्य शब्दों की जानकारी की कमी और व्याकरण का विस्तार। इस कारण यह भी कहा जाता है जानकारी फैलाने के साधन हैं लेकिन हम बेकार सामग्री का प्रसारण करते हैं।


यही दोष आज मुझ में अर्थात् मीड़िया, मीडियेटर, मिडिलमैन, पत्रकार, लेखक, समन्वयक इत्यादि में भी आ गया है। अतः सर्वप्रथम तो शब्द-ब्रह्म और भाषा विज्ञान के बारे में कुछ जानकारी देते हुए अपने बारे में  अपने जातीय बन्धुओं से कुछ कह कर अपनी बात शुरू की है अतः आप इस देवर्षि नारद के तीनों ब्लॉग्स को आराम से पढ़ें।


अब मैं हजारे अन्नाजी से, हजारे भाईजी से कहना चाहता हूँ कि अब जब आपकी टीम राजनीति में जाना चाह रही है और आप राजनीति से परहेज़ करते है तो क्यों नहीं आप अपने कन्धों का उपयोग पूरे भारत की राजनीति में परिवर्तन के लिए करें। मैं भी राजनीति से इतनी नफ़रत करता था कि मेरे एक मित्र जो राजनीति में चले गए तो मैंने उनसे सम्बन्ध ही तोड़ दिया। मैं अशोक गहलोत के चुनाव क्षेत्र जोधपुर में हूँ। एकबार वे 80 के दशक में चुनाव के समय अशोक गहलोत का कार्यक्रम मेरे घर पर रखना चाहते थे तो मैंने ना कर दिया था।


मैंने धर्म के नाम पर व्याप्त अज्ञान [खोटी जानकारी] के विषय में हस्तक्षेप करने के लिए गीता की व्याख्या की है। जिसका उद्देश्य उस भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना है जो बौद्धिक और शैक्षणिक विषयों में हो रहा है।

आर्थिक भ्रष्टाचार का नुकसान तो अन्ततः प्राकृतिक उत्पादक वर्ग को भुगतना पड़ता है। उस परिप्रेक्ष्य में अर्थव्यवस्था को आदि से अन्त तक सुदृढ़ करने के लिए एक सिंचाई प्रणाली पर शोध कार्य किया है। जो भारत को एक ऐसी सुदृढ़ स्थिति देगा जिस कारण भारत का भूमि-पुत्र हमेशा मजबूत बना रहेगा।


जो लोग काम और अर्थ की कॉमर्शियल गणित में उलझे हुए होते हैं वे पैसे कमाने की कामना में इतने कमीने हो जाते हैं की हम तो क्या उनके अन्दर का भगवान भी उन्हें नहीं सुधार सकता। अतः इन कॉमर्शियल प्रोफेशनल लोगों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे पैसे को लेकर अनियमितताएं नहीं बरतेंगे अतः आपको ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिस व्यवस्था में वटवृक्ष भारत की जड़ें हमेशा के लिए पुनः मजबूत हो जाएँ।  

अब जब आपके आन्दोलन का प्रभाव देखा तो मैंने अपनी योजना में, पत्रकार बन कर तीसरा आयाम भी जोड़ दिया। 'राजनीति को दल-दल मुक्त करो'। 


आपको भी दलीय राजनीति के कारण, राजनीति से परहेज है। लेकिन अब जब स्थिति जटिल हो गयी है तो आपको चाहिए कि एक नये दल को बना कर या समर्थन देकर दल-दल का विस्तार नहीं करें। आज भारतीय राजनीति को नया आयाम देना होगा। मैं राजनेता बन कर राजनीति में नहीं आ रहा बल्कि एक पत्रकार बन कर हस्तक्षेप कर रहा हूँ।


अतः आपसे अपेक्षा करता हूँ कि आप और आपके अनुयायी अपना मानवीय धर्म निभाएं। संसद को दल- दल मुक्त करने के इस अभियान को समर्थन दें। जबकि आप तो एक राजनैतिक दल और बनाकर इस दल-दल के खेल को बढ़ावा देंगे। मैं अन्ना को इसलिए आदरणीय मानता हूँ कि उन्होंने किसानों और ग्रामीणजन के लिए काम किया है। अतः उनकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता।

रही बात अन्ना टीम की और समर्थकों की, तो टीम से कहना है कि कृपया नया दल बना कर दलदल का विस्तार न करें। आप अपना एजेंडा बता दें और अपने समर्थकों से कहें कि जो इस एजेंडे पर सहमत हो उसव्यक्ति को निर्दलीय चुनें।  

अन्ना समर्थकों से अनुरोध है कि वे मतदाता धर्म का पालन करें और अपनी शर्तों पर अपने क्षेत्र के स्थायी निवासी का, अपना जाना-पहचाना ईमानदार प्रतिनिधि का चुनाव करें जिससे आप चुनाव के बाद भी निधड़क होकर मिल सकें और अपने जिले को एक संपन्न और समृद्ध जिला बना सकें। मान कर चलें खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता। हाँ अन्य राजनैतिक दलों की तरह एक अन्ना या केजरीवाल दल बन जाएगा और दलदल का और अधिक विस्तार हो जाएगा, लेकिन तब आपको स्वर्ग नहीं मिलेगा स्वर्ग तो टीम को मिलेगा।  


मैं एक पत्रकार की श्रद्धा [हैसियत,औकात] से कहा रहा हूँ कि यदि मुद्दा भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम का है तो यह एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से अधिक परिणाम नहीं दे पायेगा। क्योंकि नकारात्मक तथ्य का उत्तर भी नकारात्मक ही होगा। प्रत्येक बिंदु पर विषमता को प्राप्त कर चुकी इस अव्यवस्था के कुछ-कुछ बिन्दुओं को अपने-अपने अलग-अलग तरीके से सुधारने के प्रयास में हम कभी भी सफल नहीं हो पायेंगे। अतः हमें एक ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जिसमे सब का समर्थन हो।


लेकिन यह होगा तब जब संसद में सर्व सम्मति बने। सर्व सम्मति तब सम्भव होगी जब संसद दल-दल से मुक्त होगी। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री भी यह बात स्वीकार चुके हैं कि राजनैतिक असहमति के चलते संसद में आम सहमति नहीं बन पाती है।

कारण स्पष्ट है कि विपक्ष अपना विधर्म निभाते हुए असहमति जताता है, विपक्ष चाहे किसी भी पार्टी का हो विपक्ष, विपक्ष ही होता है। तो क्यों नहीं हम विश्व के अपने सबसे पुराने प्रजातंत्र प्रणाली को पुनः उसी 
गौरवशाली तरीके से पुनः स्थापित करें, जिस प्रणाली में अलग-अलग विचारधारा के दल नहीं होते थे, जब कोई दल या व्यक्ति किसी एक वाद, विचारधारा अथवा दृष्टिकोण में बँध जाता है तो वह प्रथम चरण में पूर्वाग्रही और द्वितीय चरण में दुराग्रही हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह सर्वकल्याणकारी विचारों से च्युत हो जाता है,चूक जाता है तब वह अचूक निशाना नहीं साध सकता और तब उसकी साधना निष्फल हो जाती है।

मैं किरण बेदी का भी तब से प्रशंसक हूँ जब वे प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा थीं। लेकिन वह प्रशंसा सकारात्मक आवेश वाली उनकी व्यक्तिगत दृढ़ता को लेकर थी, लेकिन आज जब वे व्यवस्था से लड़ने के लिए अन्ना का उपयोग कर रही हैं तो यह बालाबुद्धि मानी जाएगी। अगर आप भ्रष्टाचार के विरुद्ध होने का, नकारात्मक आवेश वाला बचपना छोड़ कर ईमानदारी से राष्ट्र का भला चाहती हैं तो नकारात्मक आवेश में आकर विरोध की राजनीति के दलदल में धंसने के स्थान पर टीम के सभी सदस्यों को साथ लेकर सिर्फ एक चुनाव क्षेत्र में एक आदर्श नमूना ideal-model बना दें कि निर्दलीय प्रत्याशी को सर्वसम्मति से कैसे चुना जा सकता है। यह काम समय पर हो गया तो आगामी संसद के लिए होने वाले आम चुनावों में आप सर्वसम्मति से अपना बिल पास करवा सकते हैं और चुनाव आयोग को भी चाहे जैसा अधिकार दे सकते हैं ताकि ईमानदार व्यक्ति निर्दलीय राजनीति में निःसंकोच आ सकें।


अन्ना जी मुझे यह भी पता नहीं कि आप टीम को चलाते हैं या टीम आपको। अतः यह भी पता नहीं की यहबात आप तक पहुंचेगी भी या नहीं और चूँकि मुझे कोई जानता भी नहीं है और मैं अकेला ही इस मुहिम में हूँ अतः मेरे इस ब्लॉग को पढ़कर कोई मेरी बात आप तक पहुँचायेगा इसमे भी शंका है। लेकिन मैं भी सनकी हूँ अतः मेरी सनक तो देखो कि मैं अकेले अपने आर्थिक-मानसिक बलबूते पर इतना बड़ा मिशन लेकर चल रहा हूँ जिसका पूरा प्रारूप इस ब्लॉग श्रृंखला में देखने को मिलेगा। 


अंततः बात इतनी सी है कि आप सभी, जो भी इसे पढ़ रहे है, सही मायने में ईमानदार हैं तो भ्रष्टाचारमुक्त भारत के लिए एक दूसरे की खाल खींचने के स्थान पर एक सिरे से नया भव्य महाभारत बनाने वाली सकारात्मक बात करें। यह कैसे संभव होगा यह दूसरे चरण की बात है, प्रथम चरण में भारतीय राजनीति को दलदल मुक्त करें ताकि जनप्रतिनिधि अपने दल के हाईकमान की ग़ुलामी से स्वतन्त्र हो, ताकि राष्ट्र स्वतंत्र कहलाये। अभी तो आपके प्रधानमंत्री भी स्वतन्त्र नहीं हैं। लेकिन आप सिर्फ सत्ता हस्तान्तरण चाहते हैं तो आपकी मर्जी। तब मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि आप अपनी नैतिकता को टटोलें।

आपने कहा है कि जनता से पूछते हैं, तो मैं एक पत्रकार के मनोविज्ञान से, उस जनता से पूछ चूका हूँ, जो आपके समर्थन में आन्दोलित थे, कि अन्ना पार्टी बना रहे हैं, आपकी क्या राय है। तो उनका उत्तर था वे भी भ्रष्ट हो जायेगे! अतः यही उचित तरीका है कि आप संसद को दलदल मुक्त करने और पार्टी प्रतिनिधि के स्थान पर अपना जन-प्रतिनिधि चुनने की बात कहें ताकि आप की गरिमा भी बनी रहे और एक नयी राजनैतिक पहल हो।

कुछ दिनों पहले जब प्रधानमंत्री निवास पर हो-हल्ला किया था, उस सन्दर्भ में मनीष सिसोदिया को एक चैनल पर देखा था। पत्रकार ने जब कहा कि इस तरह प्रधानमंत्री निवास पर और अन्य स्थानों पर प्रदर्शन का तरीका गलत है तो आपने उस पत्रकार का यह कह कर मुँह बन्द कर दिया था कि आप बताओ उचित तरीका क्या होना चाहिए ! तो उचित तरीका मैं बता रहा हूँ कि आप दो-चार जिलों में इस तरह से व्यवस्था बना कर बता दें कि अपने क्षेत्र का अपना निर्दलीय जन प्रतिनिधि कैसे चुना जा सकता है। जब तक सांसद पार्टी हाईकमानों के ग़ुलाम रहेंगे और पार्टी हाईकमान गठजोड़ राजनीति में सरकार को ब्लैकमेल करते रहेंगे तो भारत निरंतर रसातल में जाता रहेगा।


जब मैं भी वही चाहता हूँ जो आप चाहते हैं तो फिर अकड़ किस बात की है ! मैंने आपको दो-तीन मेल किये लेकिन एक तरफ तो आप जन समर्थन लेने की बात कर रहे हैं दूसरी तरफ आपको मेल का जबाब देना शायद गरिमापूर्ण नहीं लगा इसलिए मैंने यह कहा है कि मुझे पता नहीं टीम आपको चरा रही है या आप टीम को चला रहे हैं। यह पोस्ट भी मैं ईमेल कर रहा हूँ।



इस ब्लॉग श्रृंखला के माध्यम से मैं सबसे पहले तो उन लोगों के सम्पर्क में आया हूँ जो आप लोग इण्टरनेट का उपयोग कर रहे हैं और मेरी बात पढ़-सुन रहे हैं। आप से यही कहना है कि आप इसे आगे से आगे प्रचारित करें। अंततः मेरी बात उन लोगों तक पहुंचानी है, जो किसी न किसी प्राकृतिक उत्पादन से जुड़े हैं। क्योंकि वर्तमान का समय एक ऐसी व्यवस्था का कालखण्ड है कि हम सत्ता में बैठे व्यक्ति को न तो सुधरने को मजबूर कर सकते है और न ही वे इस स्तर के हैं कि धैर्यपूर्वक सुनकर धैर्यपूर्वक चिन्तन करके, धैर्यपूर्वक कोई ऐसी योजना बना सकते हैं, जो दीर्घकालीन और स्थायित्व देने वाली हो,  क्योंकि उनकी ख़ुद की कुर्सी स्थायी नहीं है।

अतः इसका एक ही तरीका है कि दो साल बाद होने वाले संसदीय चुनाव आते-आते एक ऐसे वैचारिक आन्दोलन को चरम तक पहुँचाना है जो है तो सर्वकल्याण के लिए, लेकिन हमारा लक्ष्य जिस वर्ग के कल्याण के लिए है वह वर्ग बहुसंख्यक है और आहार का उत्पादन करता है। वह मतदाता भी है तो उत्पादक और उपभोक्ता भी है, उस तक यह बात पहुँचेगी तभी यह प्रथम चरण का आन्दोलन, "दल-दल मुक्त संसद" सफल होगा। यह कैसी विडम्बना है कि जो वर्ग आहार का उत्पादन कर रहा है वही वर्ग भूखमरी से परेशान होकर नगरों की तरफ पलायन कर रहा है और आत्महत्याएं कर रहा है और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री को चिंता यूरोप को आर्थिक संकट से निकालने की हो रही है। N.D.A. ने तो उदारीकरण के नाम पर भारत की सार्वजनिक सम्पत्ति को नीलाम करने का जो काम किया उसकी तुलना में 3G और कोयला घोटाला कुछ भी नहीं है।


अतः अन्ना जी, भाई जी ! ऐसी स्थिति में आपकी चिन्ता सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि यह होनी चाहिए कि भारत को कैसे बचाया जाये।


थोड़ा कहा अधिक समझें। धन्यवाद !


आपकी भावना का सम्मान करते हुए...सभी का शुभेच्छु !

नारद !

बाबा रामदेव को खुला पत्र !

बाबा रामदेव की एक ही ज़िद रह गई है कि विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों की काली पूंजी देश में वापस लायी जाये| इस विषय में मैं उनका समर्थन करता हूँ..लेकिन इस एक ही तथ्य के तीनों आयामों के बारे में उनसे कुछ जानना चाहता हूँ।

तथ्य यह है कि, काली पूंजी का उपयोग देशहित में होगा। इस तथ्य को लेकर, मैं  बाबा रामदेव से तीन  बातें जानना चाहता हूँ।

1.उस काली पूंजी के उपयोग को लेकर आपके पास क्या योजनायें परियोजनाएं हैं?

2. कानून की जटिलताएं, और पूंजीपति की नीयत, दोनों के बीच से निकलकर कालाधन किस तरीके से आ पायेगा। अर्थात जब तक पूंजीपति खुद नहीं चाहेगा, कालाधन आना संभव नहीं है और पूंजीपति ऐसा क्यों चाहेगा ! उसका क्या इंटरेस्ट अभी भी देश में बहुत बड़ी मात्रा में काला धन है। निरंतर बढ़ रहा है और विदेशों में जा रहा है, उसके बारे में आपकी क्या योजनायें हैं ? 

3.जबकि आप राजनीति  में जाना नहीं चाहते तो कोई दूसरा दल आपकी बात क्यों मानेगा। इस तीसरे बिंदु पर मेरा कहना है कि यदि आपकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा नहीं है तो आप इस निर्दलीय राजनैतिक आन्दोलन का समर्थन करें। यह न तो किसी पार्टी विशेष का समर्थन है और न ही विरोध है।

जब मतदाता की मजबूरी दलीय प्रतिनिधि चुनने की नहीं होगी तभी वह अपने क्षेत्र का अपना ईमानदार नेता चुन सकेगा। ईमानदार और स्वाभिमानी  व्यक्ति दलीय राजनीति से घृणा के कारण राजनीति में नहीं आना चाहते। जब निर्दलीय संसद होगी, तो व्हीप जारी  नहीं होंगी और निर्दलीय व्यक्ति निर्भय हो कर स्वविवेक से सोच सकेगा।

पहले बिंदु पर एक पत्रकार की हैसियत से मेरा कहना है कि मैंने इस विषय में योजनाकार की हैसियत से काफी कार्य कर रखा है, अनेक योजनायें-परियोजनाएं हैं, जिनमे निवेश फिर आय का पुनर्निवेश और रोजगार सृजन के साथ-साथ जीवन में स्थाईत्व के सभी आयाम शामिल हैं।  इस बिंदु पर भव्य महाभारत संरचना नामक ब्लॉग में विस्तार दिया जा रहा है।

दूसरे बिंदु पर कहना है कि संविधान में संशोधन करवा के आयकर, विक्रयकर और अन्य प्रत्यक्ष कर हटा दिए जायेंगे। इससे काला धन पैदा नहीं होगा और जो भी व्यक्ति  इन योजनाओं के लिए बाहर से निवेश लाएगा उससे यह नहीं पूछा जाएगा कि यह धन काला है या सफ़ेद है।

यदि आपकी नीयत में खोट नहीं है, मन में पाप नहीं है, घरबार छोड़ चुके हैं, अतः स्वार्थ के स्थान पर परमार्थ से सोच सकने में समर्थ हैं तो यह मेरी योजना इस तरह की है कि इसमे किसी भी वर्ग का अहित नहीं होगा। आपको भी परमार्थ कार्य करने का भरपूर क्षेत्र मिलेगा।

अब आपकी नियत तो आप ही जानते हैं। आपने तो भगवाँ पहन कर भी बड़े-बड़े उद्योगपतियों को पीछें छोड़ दिया है,यह आपकी व्यावसायिक बुद्धि का कमाल है। चूँकि आप व्यापार-वाणिज्य में हैं अतः आपकी नजर काली पूंजी  पर है। लेकिन व्यापार में आपने जिस तरह की प्लानिग की है उसी तरह की प्लानिग इस काली पूंजी के लिए भी की होगी, वह प्लानिग डिक्लेयर कर दें।

लेकिन यह कहावत हमेशां ध्यान में रखें की "हाथी को बाँहों में नहीं बाँधा जा सकता"। अतः पूंजी के बल पर भीड़ इकठ्ठी करना अलग बात है और विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के तंत्र को चलाना अलग बात है।

मैं यह मानता हूँ कि भारत की दुर्दशा का कारण कोंग्रेस पार्टी है लेकिन इसके दुसरे पक्ष की सच्चाई यह भी है कि अन्य सभी दल भारत को ऐसे रसातल में लेजाकर पटकेंगे की भारत की रीढ़ ही टूट जाएगी। अतः यदि आप अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं तो आप की आप ही जानते हैं लेकिन यदि भारत का,मानवता का और सनातन धर्म का भला करने में अपनी ड्रेस कॉड का उपयोग करना चाहते हैं तो आप संसद को दल-दल मुक्त कराएँ और भारत की मूल प्रजातांत्रिक पद्धति को पुनर्प्रतिष्ठित करावें।

ऐसा हो जाता है कि पूंजीपति की पूंजी सुरक्षित रहे और उसके उपयोग की पूरी प्लानिग हो तो आप दल-दल मुक्त संसद में देश-हित के लिए जो भी करना चाहेंगे कर सकेंगे वर्ना क्यों तो राजनैतिक दल पूंजीपतियों से पंगा लेंगे,क्यों पूंजीपति अपनी कुशल बुद्धि से कमाई पूंजी राष्ट्र को देंगे और क्यों कोई राजनेता अपनी जीवन भर की संचित पूंजी को बिना किसी लाभ के देश को समर्पित कर देगा।

जब आप घरबार छोड़ कर भी पूंजीपति बनने का मोह नहीं त्याग सके तो उनसे यह अपेक्षा करना भोलापन कहा जायेगा जो इस  मुकाम पर पूंजीपति बनने के लिए ही पहुंचे हैं। 

राष्ट्र भी मानव निर्मित संस्था है और करेंसी नोट भी मानव निर्मित मुद्रा है। आप तो भगवान के नाम पर   भगवाँ पहन कर भी पूंजीपति और राजनेता बनने का लोभ नहीं त्याग पाए और गृहस्थ को मुद्रा से वंचित करने कि चेष्टा कर रहे हैं। यह कहाँ का न्याय है।  

यदि आप ईमानदार हैं तो संसद को दल दल मुक्त करें और सांसदों को बन्धुवा मानसिकता वाली राजनीति से मुक्त कराएं। जिस राष्ट्र के सांसद ही गुलाम हों वहाँ आप किस ईमानदारी की कल्पना कर रहे हैं।

ॐ तत् सत्  

सोमवार, 10 सितंबर 2012

राजनीति के सक्रिय विद्यार्थी [कार्यकर्त्ता] बंधुओं । Students who remain active in politics !


  • भारत को उत्सवों एवं त्यौहारों का देश कहा जाता है। वैवाहिक आयोजन भी त्यौहार की तरह उत्साह से मनाया जाता है। ये सभी आयोजन मेल-मिलाप के ऐसे आयोजन होते हैं जिनमें मेरे जैसा एकांतप्रिय आत्मकेंद्रित व्यक्ति भी मिलनसार बनने के लिए मजबूर हो जाता है। 
  • भारतीयों के इस स्वभाव के कारण भारत हथाई-प्रधान देश भी है,जिस कारण यहाँ तुरन्त मोबाईल क्रान्ति हो गयी। जब चुनाव होते हैं तो अधिकाँश लोग उत्साह से सक्रिय हो जाते हैं अतः यह आयोजन भी त्यौहार की तरह ही है और इसी कारण राजनैतिक दलों को सक्रिय कार्यकर्ता भी सुगमता से मिल जाते हैं। 
  • आप किसी दल विशेष के स्थायी कार्यकर्ता हैं तो आप धैर्य से सोचें कि आपके कुछ क्षुद्र स्वार्थों के कारण आपके क्षेत्र और पूरे देश को कितना बड़ा नुकसान हो रहा है। आप को अपने दल की पड़ी रहती है और आज भी विश्वगुरु बनने की योग्यता रखने वाला जीवन्त और युवा भारत कृशकाय सा पड़ा है जो तब कुछ-कुछ हिलता-डुलता सा नजर आता है जब कोई मूर्खतापूर्ण साम्प्रदायिक वैमनस्य पैदा हो जाता है।
  • दुनिया के अन्य सभी राष्ट्रों में शासन-प्रशासन को हर समय कमर कसे हुए रहना पड़ता है वर्ना आर्थिक,सामाजिक,साम्प्रदायिक और नस्लीय समस्याओं के कारण सर्वसाधारण में तरह-तरह के विद्रोह उभर जाते हैं।
  • लेकिन भारत में जब इनकी आँच आती है तो उलटा होता है, यहाँ तो सर्वसाधारण की समझ व सहनशीलता के कारण ही ये मूर्खतापूर्ण आवेश स्वतः ठन्डे पड़ते हैं जबकि राजनैतिक दल तो इस तरह की आँच का उपयोग न सिर्फ अपनी-अपनी रोटियाँ सेकने में करने लग जाते हैं बल्कि कभी कभी इनका आयोजन भी करते हैं। 
  • ऐसी स्थिति में आप विद्यार्थी ही इस समय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और एक जनतांत्रिक क्रान्ति ला सकते हैं।
  • माना कि आपको अपना पूरा ध्यान पढाई में देना चाहिए लेकिन पढाई का अंततः उदेश्य क्या होता है! 1.ब्रेन का विकास करके खुद भी सुन्दर जीवन जीना और 2.समाज का बौद्धिक नेतृत्व भी करना। 
  • लेकिन आप ब्रेन को विकसित करने से उलट रटन्त-विद्या अपना रहे हैं और नौकर, सेवक, दास, वेतन-भोगी बंधुआ मजदूर, तनखैया बनने की आकांक्षा पालते हैं।
  • आप यदि मानवीय धर्म [मानवीय दायित्व और अधिकार] को धारण करके जीवन की सच्चाई को जानकर शान्ति और आनन्द से रहना चाहते हैं और अपने अन्दर के सृष्टम [system] को संचालित करने वाले भाव [भगवान] के सहारे अपना विकास करके दुनिया का हित करने वाला रोज़गार चाहते हैं तो आपको चाहिए आप प्रथम स्तर पर राजनैतिक धर्म को समझें, Political Liability निभाएं और इन्टरनेट के माध्यम से रचनात्मक कार्य करें और इस सन्देश को आगे से मेल करें और प्रथमतः भारत में निर्दलीय राजनैतिक प्रणाली को पुनः प्रतिष्ठित करें।
  • जब वैमनस्य फैलाने वाले इन्टरनेट के माध्यम से विध्वंसकारी कार्य करवा सकते हैं तो आप उसकी जवाबी कार्यवाही में रचनात्मक कार्य क्यों नहीं करवा सकते। 
  • इस निर्दलीय राजनैतिक प्रणाली में उन  स्थापित राजनेताओं का भी अहित नहीं होगा जो राष्ट्र के, देश व समाज के हित में कुछ रचनात्मक कार्य करने के लिए राजनीति में आये हैं बल्कि वे अधिक अधिकार के साथ काम कर सकेंगे।
  •  अतः यह स्थापित व्यवस्था और स्थापित नेताओं के प्रति विद्रोह नहीं बल्कि उनको मजबूती देने हेतु है ताकि वे पूंजी,पूंजीपतियों और असामाजिक तत्वों के वर्चस्व से मुक्त होकर समाज के हित में कुछ रचनात्मक कार्य कर सकें।  आप इन ब्लॉग्स पर विज़िट करें और इन पतों को आगे से आगे प्रेषित भी करें।
  • http://gismindia.blogspot.com/  .....वैश्विक बौद्धिक विद्यार्थी आन्दोलन।
  • http://drnaradtwo.blogspot.com/.......नैतिक राज बनाम राजनीति 
  • http://drnaradthree.blogspot.com/   ..निर्दलीय राजनैतिक मंच
  • http://prajaam.blogspot.com/  ..........भव्य महाभारत संरचना 


इसे जो भी पढ़ रहे हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि भारत में अन्य राष्ट्रों की तुलना में सब कुछ ठीक-ठाक  चल रहा है और चलता रहेगा। 

लेकिन यदि सभी भारतीय इस ठीक-ठाक चल रही स्थिति को ठोक-बजाकर बहुत अच्छी, सर्वोत्तम, The best बनाना चाहते हैं तो मैं एक अध्ययनशील विद्यार्थी की श्रद्धा के साथ न सिर्फ एक मार्ग बता रहा हूँ बल्कि लक्ष्य तक पहुँचा भी दूँगा। लेकिन इस विषय में दो अड़चनें आ सकती हैं।


एक तो यह कि क्या राष्ट्र के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति से लेकर विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, पत्रकारिता, उद्योग-व्यापार,राजनीति और सभी सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं से सम्बन्ध रखने वालों से लेकर, आप खुद भी, व्यक्तिगत स्तर पर एक दूसरे को कोसना बन्द करके किसी सार्वभौमिक सत्य, Universal truth पर आधारित व्यवस्था पर क्या एकमत हो पायेंगे !


दूसरी अड़चन यह आयेगी कि यदि सार्वभौमिक सत्य बताने वाला एक साधारण व्यक्ति हो, तो सर्वसम्मति बनाने के लिए एक अतिसाधारण कहे जानेवाले व्यक्ति को इतना महत्त्व दे पायेंगे, कि उसकी कही बात को प्रचार-प्रसार करके उस पर वार्ताओं का दौर चला सकेंगे ! शायद नहीं ! 

फिर भी मेरा धर्म यह बनता है कि मैं प्रयास करूँ।


अपनी बात सम्पादित करके कहने के लिए मैंने अभी कुल 10 ब्लोग्स की यह श्रृंखला बनाई है। इन ब्लॉग्स के माध्यम से मैं एक एक बिंदु को स्पष्ट करते हुए पूरी बात सुस्पष्ट करने का प्रयास करूँगा।


कॉपी करके भेजने की सुविधा के लिए सभी पते एक साथ.

http://drnaradone.blogspot.com/
  1. इन ब्लॉग्स पर क्लिक करें और विजिट करें| आप भी विजिट करें और आपके पास जितने भी mail address हैं उन सभी पर भेजें और इस स्वतंत्रता स्वाधीनता आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुचाएं| आप 'वैश्विक बौद्धिक विद्यार्थी आन्दोलन' नामक पहले ब्लॉग को अपने ब्लॉग्स,फ़ेसबुक,ट्विटर इत्यादि पर साझा करें| आप g+ account खोल कर इन ब्लोग्स को जोड़ लेंगे तो नई पोस्ट की सूचना आपके खाते में अपने आप मिलती रहेगी| निःसंदेह आप व्यस्त रहने वालों में हैं लेकिन स्थायी सुख के लिए थोडा तप तो करना ही चाहिए| धन्यवाद| आपका शुभेच्छु| विजय कुमार शर्मा ।
  2. ब्रह्मपुत्र घाटी और पूर्वांचल का क्षेत्र विश्व का एक मात्र मातृसत्तात्मक संस्कृति का बचा हुआ क्षेत्र है और जब कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना के अंत में पृथ्वी पर वनस्पति,प्राणी और मानव नस्लें विलुप्ति की कगार पर आ जाती है तब यही एकमात्र स्थान बचता है जहाँ सभी नस्लों,प्रजातियों,स्पीशीज़ के बीज सुरक्षित रहते हैं।अतः यहाँ किसी भी नस्ल को असुरक्षित करना और पुरुष प्रधान व्यवस्था को नारी प्रधान व्यवस्था पर हावी होने देना दोनों ही भयानक अमानवीय कृत्य कहलायेंगे। आप जो भी इस कोमेंट को पढ़ रहे हैं उनसे निवेदन है कि कृपया वे इस ब्लॉग श्रृंखला के address को पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों तक पहुचाएँ। 
  3. भारत के सामने हमेशा से दुविधापूर्ण स्थिति रही है| एक समय था सिख समुदाय भारत की नाक और माथे का टीका हुआ करता था, एक भिड़रावाले के कारण आज पूरे सिख समुदाय को बड़ी कीमत चुकाने के बाद भी वह स्थान पुनः नहीं मिल सका जो कभी हुआ करता था| जबकि वो तो हिंदुओं की ही एक शाखा है! यदि इसी तरह चलता रहा तो मानकर चलें कि मुट्ठी भर कुछ लोगों के कारण पूरे भारत मे गुजरात जैसी स्थिति बन जाएगी| जिस तरह भिंडरावाले के सामानान्तर राजनेता का भी हाथ था उसी तरह इन मुस्लिम कट्टरपंथियों के समानांतर भी राजनीति का हाथ रहता है अतः राजनीति को सुधारना भी आवश्यक हो जाता है। समन्वय और सहनशीलता के आचरण से पहचाने जाने वाले भारत मे यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है अतः एक ऐसी राजनैतिक क्रांति की आवश्यकता है जो भारत की राजनीति को दलदल मुक्त करे। तब हम जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वे सांप्रदायिक वैमनस्य मिटाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर सकेंगे।
  4. अंतर्राष्ट्रीय स्तर के एक मुस्लिम नेता ने यह आशंका जताई थी कि "यूरोप से नाजी आन्दोलन की तरह का एक Movement चलेगा, अबकी बार उसका ध्येय मुस्लिमों का सफाया होगा। इसी तरह सामरिक विषय के विशेषज्ञों का आँकलन है कि अबकी बार विश्व-युद्ध हुआ तो मुस्लिम राष्ट्रों और अमेरिकी नैतृत्व के बीच होगा। दोनों ही स्थिति में यदि सुरक्षित रहेंगे तो सिर्फ भारतीय मुस्लिम।यह मेरा आंकलन है अतः मुस्लिमों से भी में विशेष तौर पर अनुरोध करता हूँ कि वे निर्दलीय आन्दोलन में जुट जाएँ। तब आप और अधिक सुरक्षित हो जायेंगे।  

ॐ तत सत 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

शास्त्र = धर्म + विज्ञान !

         संस्कृत सभी भाषाओं के उच्चारणों को संग्रहित करके फिर संस्कारित करके विकसित की गई वैज्ञानिक-धार्मिक भाषा है। संस्कृत के अपभ्रंश उच्चारण से लेटिन शब्दकोश विकसित हुआ जो ईसाईयों की धार्मिक-वैज्ञानिक भाषा है।
धर्म और विज्ञान ठीक उसी तरह के दो पक्ष हैं जैसे कि ज्ञानेन्द्रियाँ एवं कर्मेन्द्रियाँ,सर एवं धड़,चित्त  एवं पुट,दांया पंख-बाँया पंख,महिला एवं पुरूष इत्यादि अर्थात् एक दूसरे के पूरक,परस्पर निर्भर, समानान्तरण बिछी दो पटरियों की तरह। इस चैप्टर के माध्यम से यह प्रमाणित करना कि धर्म एवं विज्ञान जो कि अभिन्न है इसे भिन्न समझने वाले या तो धूर्त हैं जो अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु ऐसा प्रचारित प्रसारित करते हैं या फिर मूर्ख हैं जो धूर्तों के चंगुल में फँसे हैं।
    लेकिन यदि आप यह स्वीकार करने की समझ रखते हैं कि धर्म को एक वाणिज्य-व्यापार का रूप देने के लिए यक्षों ने जबसे इसका उपयोग अहिंसा के नाम पर ढाल के रूप में किया और हिंसा के रूप में घृणा फैलाने के लिए किया और राक्षसों ने इसका उपयोग आतंकी-हिंसा फैलाने के लिए किया और अहिंसा के नाम पर अपने विरोधियों को अंकुश में करने के लिए किया तब से धर्म नामक चिड़िया विलुप्त प्राणियों के चिड़ियाघर की रौनक बन कर रह गयी है तो आप न तो धर्म और विज्ञान को अलग मानने वाले धूर्त वर्ग में हैं और न ही मूर्ख वर्ग में हैं। 
संस्कृत की एक तरफ तो यह विषेषता है कि इसमें अथाह ज्ञान कोश रचा गया और सभी भाषाओं के असंख्य शब्द संस्कृत के अपभ्रंश उच्चारणों से विकसित हुए तो दूसरी तरफ संस्कृत का मूल शब्दकोश सिर्फ चार सौ-पाँच सौ शब्दों का है। 
वर्तमान में एक तरफ़ अंग्रेजी है, दूसरी तरफ हिन्दी। एक तरफ लेटिन व ग्रीक के शब्द-कोशों से अंग्रेज़ी विकसित हुई है और छा गई है। दूसरी तरफ संस्कृत और संस्कृत-शब्दकोष वाली हिन्दी अपने उच्चारण की कठिनाई के कारण लगातार हाशिये पर सिमटती जा रही है। इस चैप्टर में इस बात का प्रयास किया जायेगा कि संस्कृत्यजन्य हिन्दी को ऐसा दर्ज़ा दिया जाये जैसा कभी संस्कृत का था अर्थात् कुलीन,सभ्य,संस्कारित उच्च बौद्धिक वर्ग की भाषा का दर्ज़ा दिया जाये और किसी भी राजनैतिक पद एवं उच्च सरकारी पद पर नियुक्ति उसी को दी जाये जो संस्कृतजन्य हिन्दी जानता हो ताकि वह संस्कृत ज्ञानकोष से जुड़ने के साथ ही इतिहास से भी जुड़ जाये और पूरे भारत से भी जुड़ जाये और मूल ज्ञान-विज्ञान से भी जुड़ जाये और अपने आप से भी जुड़ा रहे। 
संस्कृत का शास्त्र शब्द जब लेटिन अमेरिका पहुँचा तो वैज्ञानिक साहित्य के साथ और जब ग्रीक पहुँचा तो दार्शनिक साहित्य के साथ पहुँचा था। अतः लेटिन में यह साईंस उच्चारित हुआ और ग्रीक में सेन्स अर्थात् शास्त्र। अतः शास्त्र ऐसा लिखित साहित्य है जो सेन्स (धर्म) और साईन्स (विज्ञान) दोनों को समानान्तरण रख कर बताता है।