धार्मिक वैज्ञानिक भाषा संस्कृत की शब्दावली में शब्दों के तीन-तीन अर्थ चलते हैं।
शब्दार्थ:-
प्रत्येक शब्द का एक ही शब्दार्थ होता है। महेश्वर सूत्र के अनुसार सुनिश्चित करके बनाये गए शब्द का शब्दार्थ जानना पहली आवश्यकता है। यदि आप शब्द के शब्दार्थ की अवहेलना करके सीधे भावर्थ में चले जाते हैं तो भावनाओं में बह जाते हैं.
तीन तात्विक अर्थ होते हैं.....
एक ही शब्द के विविध भावार्थ होते हैं.भाव के अर्थ में अनेक बार शब्दार्थ और तत्वार्थ दोनों गौण हो जाते हैं.अतः यहाँ यह देखा जाता है की बोलने वाले का मन्तव्य क्या है ?एक ग्रामीण अधिक संवेदनशील ,अधिक समझदार,अधिक ज़िम्मेदार,अधिक विद्वान् हो सकता है.लेकिन वह मान्यता प्राप्त साहित्यिक शब्दों को नहीं बोलता है तो उसे गंवार कह दिया जाता है,जबकि उस समय उसका मन्तव्य समझने में ही समझदारी होती है.
अनेक बार शब्द शुभ और अशुभ के चक्कर में फंस जाते हैं इस सन्दर्भ में एक
हास्य-व्यंग उदाहरण
गाँव के सभी लोग बुआजी से इसलिए परेशान थे कि बुआजी अशुभ बोलती थी .एक बार गाँव वालों ने कहा :"बुआजी हम आपको पूरे वर्ष का अनाज एक साथ दे दें तब तो आप हमें अपशगुन की बात नहीं बोलेंगी ."
बुआजी::"पक्का रहा तुम हर हालत में मुझे साल भर का अनाज एक साथ दोगे ?"
गाँव वाले :"हाँ हाँ पक्का रहा "
बुआजी :"देखो कान खोलकर सुन लो मुझे साल भर का अनाज एक साथ चाहिए,भले ही तुम्हारे खेतों में आग लग जाये "
इस तरह के अशुभ शब्द आपको तब प्रभावित करते हैं जब आपका ब्रह्म प्रभावित हो जाता है वर्ना तो तांत्रिक क्रियाएं भी आप को प्रभावित नहीं कर सकती हैं.
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