ब्रह्म संस्कृत शब्द है. जिसका लेटीन रूपान्तर ब्रेन Brain हैं.शब्द जब आपकी श्रवण ज्ञानेन्द्रि से ब्रेन में पहूँचता है तो आपके ब्रेन का सत्व उसे स्मृति के रूप में ग्रहण कर के संग्रह कर लेता है जिसे आप जानकारियाँ कहते है
जब आप का ब्रह्म रज के प्रभाव में होता है तो आप आवेशित होकर सक्रिय हो जाते है .
तम के प्रभाव से आप भ्रमित हो जाते हैं .
शब्द ही है जो आप के ब्रह्म(चेतना) को प्रभावित करता है ."मैं ब्रह्म हूँ" अर्थात ब्रह्म एक वचन होता है क्योंकि सबका अपना अपना विशिष्ठ होता है.
जब सभीका ब्रह्म सम हो कर "हम" का रूप ले लेता है तो समाज बन जाता है.
तब परस्पर सम्वाद के माध्यम से शब्द ही सब के ब्रह्म को आपस में जोड़ता है.
मैं नारदीय परम्परा यानि स्वतंत्र सामाजिक पत्रकारिता परम्परा का वाहक हूँ.आप सामाजिक प्राणी हैं अतः आप की नीयत समाज में रहने की होने से आपकी नियति है कि आप को समाज में रहना है.
लेकिन जब आपके ब्रह्म आपस में मिलते भी नहीं है और संवाद भी नहीं होता तो विषमता आ जाती है .इससें भी बुरी स्थिति तब बनती है जब संवाद तो होता है लेकिन अप्रिय शब्दों के साथ होता है.तब आपस में मैं-मैं, हम-हम और हम-तुम होने लग जाता है.
इन विषमताओं को बढ़ाने और कम करने कराने में आपका ब्रह्म और आपके शब्द ही मूल कारण होते हैं.
विषमताओं में भी सम रहने का एक मात्र तरीका है ब्रह्म को समझना.लेकिन जब या तो आप शब्द का अर्थ जानते हूए भी उसका उपयोग ही विषमता फ़ैलाने के लिए करते हैं या फिर आप शब्द का अर्थ नहीं जान कर भी या शब्द का गलत/खोटा अर्थ जान कर भी उसे सही अर्थ समझने लग जाते हैं.तब भी विषमता फैलती है .
आज का सम आज का समाज है लेकिन आजके वर्तमान में भी हम पूर्व में स्थापित मान्यताओं पर चलते हैं तो हमें मान्यता प्राप्त शब्दों का अर्थ तो पता होना ही चाहिए
अतः अपन आपस की सामाजिक बातें शुरू करने से पहले शब्द-ब्रह्म को अच्छी तरह समझने से शुरू करें . इसी तरह आपके मुख से निकले हुए शब्द ही आपके ब्रह्म को व्यक्त करते हैं.अव्यक्त ब्रह्म आपके मन-बुद्धि -अहंकार के रूप में व्यक्त होता है. आप को चाहिए कि आप अपने आप को जानने के लिए अपने मन-बुद्धि-अहंकार को समझने का प्रयास करें. लेकिन होता क्या है कि आप अपने आप को जानें इससे पहले ही लोग आपको जान जाते हैं कि आप किस खेत कि मुली हैं.क्योंकि आपके मुखसे निकले शब्द आपके मन-बुद्धि-अहंकार को दूसरों के सामने अभिव्यक्त कर देते हैं.
आज आपके भारत की राजनीति में जो लोग हैं उनमे अधिकाँश लोग यह सोचते हैं कि वे विपक्षी दल की पोल खोल रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि वो जी तरह की भाषा का उपयोग करते है उससे उनके ब्रह्म / ब्रेन की पोल खुलती है.
आप जब अपने व्यक्तित्व का विकास करने के लिए उत्साहित रहते है तो दूसरो के गुणों को अपने व्यक्तित्व में जोड़ने की चेष्टा करते हैं.इस तरह पहले से ही विद्यमान आपके अपने गुणों में कुछ और गुणों का योग हो जाता है और आपकी योग्यता में वृद्धि हो जाती है.लेकिन जब आप इस योग्य नहीं होते हैं कि अपनी योग्यता में कुछ और गुणों का योग कर सकें तो आप अपने आपको प्रतिपक्षी से अधिक योग्य साबित करने के स्थान पर प्रति पक्षी को अयोग्य साबित करने के लिए उसकी आलोचना कर देते हैं,यहीं से आपकी पोलपट्टी चौड़े आ जाती है.आज की राजनीति में यही हो रहा है.चूँकि व्यक्तिगत आलोचना तो कर नहीं सकते अतः प्रतिपक्षी दलों की या दल की आलोचना कर देते हैं.इसी तरह अपनी अयोग्यता को छिपाने के लिए अपने दल की आड़ भी ले लेते है. तो क्यों नहीं आप अपने क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि चुने जो आपका अपना हो न कि किसी दल का प्रतिनिधि मात्र हो .
मज़ेदार उदाहरण :
जब पड़ोस में नया परिवार आकर रुका तो वह बड़ी खुश हुयी और पहुच गई झगडा जड़(शब्द ब्रह्म )को लेकर और नई पड़ोसन से बोली "आ ऐ डाव्ड़ी /सहेली लड़ाई करें "
पड़ोसन बोली "लड़े मेरी जूती"
वह बोली "जूती मार अपने खसम के माथे पर"
पड़ोसन बोली "मैं क्यों मारूं तू मार"
वह बोली "मैं मार दूंगी,बता तेरी जूती कहाँ पड़ी है और तेरा खसम कब आएगा "
तो लो साहब शब्द बाण चलने शुरू हो गए और आहत करने लग गये एक दूसरे के ब्रह्म को .
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